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वेयावच्चगराणं सूत्र . ३२५ सुलसा सती ने पुत्र के विरह में पति की असमाधि देखकर, शासन रक्षक देवों को याद किया । देवों ने आकर उन्हें ३२ गुटिकाएँ ही, जिससे सुलसा को ३२ पुत्ररत्नों की प्राप्ति हई, इससे पति की असमाधि टल गई। सीता सती ने अग्नि में प्रवेश करते ही देवों को याद किया, देव प्रत्यक्ष हुए । वहीं अग्निकुंड पानी के सरोवर में बदल गया ! मनोरमा सेठानी ने शासन देव को ध्यान में रखकर कायोत्सर्ग शुरू किया, तब सुदर्शन सेठ के लिए बनाई गई शूली सिंहासन में पलट गई ! मंत्रीश्वर शकडाल की पुत्री यक्षा साध्वीजी ने पर्युषण पर्व के दिन अपने छोटे भाई श्रीयक से उपवास करवाया। असह्य क्षुधावेदनीय के कारण मुनि श्रीयक का कालधर्म (मृत्यु) हुआ । इससे यक्षा साध्वी को खूब दुःख हुआ, ज्ञानी गुरु भगवंत के पास प्रायश्चित्त किया। फिर भी मन को शांति नहीं मिली। तब श्रीसंघ ने कायोत्सर्ग करके शासनदेवी को प्रकट किया, प्रकट हुई देवी महाविदेह क्षेत्र में सीमंधरस्वामी के पास यक्षा साध्वीजी को ले गई। वहाँ प्रभु ने स्वमुख से कहा, 'यक्षा! आप निर्दोष हैं, उससे यक्षा साध्वीजी स्वस्थ हुई और सीमंधर स्वामीजीने भरत क्षेत्र के संघ को चार अध्ययन की भेंट दी । इस प्रकार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गुणवान आत्माओं की असमाधि को टालने का काम शासनरक्षक देव करते हैं।
करेमि काउस्सग्गं - मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । सम्यग्दर्शनादि गुणवाले जिन-जिन देवों ने जैनशासन की सेवा की है, अनेक उपद्रवों का निवारण करके संघ में पुनः शांति का प्रस्थापन किया है, धर्मी आत्मा की समाधि में सहायक बने हैं, उन-उन सम्यग्दृष्टि देवों को याद करके उनके इस उत्तम कार्य की अनुमोदना के लिए अथवा प्रमाद में पड़े उन देवों को प्रोत्साहित करने के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । ___ सम्यग्दृष्टि देवों के स्मरण के लिए, उनके गुणों की प्रशंसा के लिए या उनको प्रसन्न करने के लिए उनको उत्तम वस्तु का अर्पण आदि बहुत