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________________ ३२४ सूत्र संवेदना - २ व्यावृत्तभाव अर्थात् वापस लौटना-स्वामित्व छोड़ देना। तन-मन और धनादि पदार्थों के प्रति अपना स्वामित्व छोड़कर, अन्य को अर्पण करना, वह भी एक प्रकार की वेयावच्च है । शासन के प्रति भक्तिवाले देव महाचारित्र संपन्न आत्माओं की सेवा में हाजिर रहते हैं । केवलज्ञानियों के महोत्सव करने में आनंद मानते हैं। तीर्थ स्थानों की रक्षा के लिए सदा जागृत रहते हैं। अरिहंत परमात्मा के समवसरण की रचना करते हैं। अपने विमान में रहे चैत्यों की भी पूजादि करते हैं। ऐसे अनेक प्रकार से वे शासन की सेवा करते हैं। शासन के अधिष्ठायक चकेश्वरी देवी, अंबिका देवी, पद्मावती देवी, गोमुख यक्षादि के शासनरक्षा और भक्ति के कार्य प्रसिद्ध हैं । संतिगराणं - शांतिदाता (देवों के स्मरण के लिए मैं कायोत्सर्ग करता Phoo __ संघ में मारी, मरकी या दुष्ट देवों द्वारा किसी भी प्रकार का उपद्रव हुआ हो तो उपयोगवाले शासनरक्षक देव स्वयं आकर उन उपद्रवों को शांत करते हैं और अगर उनका उपयोग न हो तो साधक द्वारा उनका स्मरण करने पर तुरंत वे आकर संघ में शांति बनाये रखने का कार्य करते हैं । सम्मद्दिट्ठि-समाहिगराणं - सम्यग्दृष्टि जीवों को समाधि देनेवाले (देवों के स्मरण के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ ।) यहाँ सम्यग्दृष्टि अर्थात् सामान्य से धर्म के प्रति प्रीतिवाले सभी जीव। धर्म के प्रति स्नेहवाली आत्माओं को जब-जब स्व-पर की समाधि खतरे में लगती हो और असमाधि को टालने का खुद का सामर्थ्य न दीखता हो, तब वे अपने से अधिक सामर्थ्यवाले समकिती देव-देवी को याद करते हैं और उनके निमित्त से कावीत्सर्ग आदि करते हैं । जिससे समकिती देव भी तुरंत प्रत्यक्ष होकर तत्काल असमाधि के कारणों को दूर करते हैं, जिससे वह आत्मा समाधि को प्राप्त करती है ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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