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सूत्र संवेदना - २
ठीक ही है । जो वस्तु या जो व्यक्ति जिसे अच्छा लग जाता है उसमें अपने चित्त को लगाने में मेहनत नहीं करनी पड़ती, चित्त वहाँ स्थिर हो ही जाता है; वैसे ही चैत्यवंदन के सूत्र के अर्थ के प्रति बहुमानवाली आत्मा का चित्त उन-उन सूत्रों में और उनके अर्थ में सहजता से स्थिर हो जाता है ।
५. परा जिज्ञासा :
एक बार जहाँ मन लग जाए, उसके विषय में अनेक प्रश्न मन में उठते हैं, उसकी विशेषता समझने की इच्छा सहज भाव से ही हो जाती है, वैसे ही चैत्यवंदन के सूत्रों के प्रति बहुमानवाली आत्माओं को चैत्यवंदन विषयक गहरा ज्ञान पाने की तीव्र इच्छा होती है ।।
जहाँ अर्थीपन हो वहाँ बहुमान भाव को व्यक्त करनेवाले ये लक्षण स्वाभाविक देखने को मिलते हैं। इन पाँचों लक्षणों के द्वारा चैत्यवंदन के ऊपर या चैत्यवंदन के सूत्रों के ऊपर और चैत्यवंदन के अनुष्ठान बतानेवाले अरिहंत प्रभु के ऊपर बहुमान है या नहीं, यह जानने के बाद योग्य आत्माओं को सूत्रादि प्रदान करना चाहिए ।
सूत्रादि के लिए समर्थ वे जीव कहलाते हैं, जो विधि मार्ग में परायण हों । सूत्रादि धर्म का सामर्थ्य जानने के लिए शास्त्र में विधि परायण के निम्न लिखित लक्षण बताए हैं । विधिपरायण के पाँच लक्षण :
१. गुरुविनय : इष्ट वस्तु जहाँ से प्राप्त होती है, उसके प्रति संसारी जीव विनयादि करते हैं, वैसे ही चैत्यवंदन पर बहुमानवाले जीव भी चैत्यवंदन सूत्र के दायक ऐसे सद्गुरु भगवंतों के प्रति उचित विनयादि करते हैं ।
२. सत्काल अपेक्षा : जगत् में जो कार्य जिस समय करना हो, उसका अर्थी उसी समय उसके