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भूमिका सूत्रादि धर्म के प्रति हमारे मन में बहुमान का परिणाम है कि नहीं, उसका निश्चय करने के लिए शास्त्रकारों ने निम्नलिखत पाँच लक्षण बताए हैं । बहुमान भाव के पाँच लक्षण :
१. तत्कथाप्रीति :
जिस व्यक्ति को, जिस वस्तु के प्रति बहुमात्र भाव होता है, उस वस्तु के विषय में बात-चीत करने से वह व्यक्ति कभी ऊबता नहीं है । वैसे ही चैत्यवंदन के सूत्र को पढ़ने वाले या चैत्यवंदन की क्रिया करनेवाले को भी चैत्यवंदन के सूत्र के अर्थ विषयक बात करने में थकान या आलस न आए बल्कि आनंद आए तो समझना चाहिए कि चैत्यवंदनादि के प्रति बहुमान है, ऐसे बहुमानवाले ही चैत्यवंदन के अर्थी कहलाते हैं ।
२. निंदा का अश्रवण :
जो चीज अच्छी लगती है, उसकी कोई निंदा करे, तो वह निन्दा सुनना अच्छा नही लगता । वैसे ही चैत्यवंदन या उसके सूत्रों के प्रति बहुमान वाले भी, चैत्यवंदन की, चैत्यवंदन बतानेवाले की या करनेवाले की निंदा नहीं सुन सकते ।
३. निंदक के ऊपर दया :
चैत्यवंदन के सूत्रों के प्रति बहुमानवाले व्यक्ति को चैत्यवंदन की निंदा करनेवाले व्यक्ति के ऊपर दया आती है । वह ऐसा सोचता है - "इस बिचारे को ऐसी किंमती चीज की कोई कदर नहीं है । ऐसी उत्तम चीज से यह जीव वंचित रह गया है । निंदा करके वह अपना संसार का परिभ्रमण बढ़ा रहा है । वह इन सूत्रों और इस क्रिया के महत्त्व को समझे तो अच्छा है।' इस तरह वह उसके प्रति दया का भाव प्रकट करता है।
४. चित्तन्यास : 'जो चीज अच्छी लगे, उसमें मन लगा रहता है' - ऐसी लोकोक्ति है और यह