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________________ पुक्खरवरदी सूत्र .. २९३ शैलेशीकरण करके अर्थात् आत्म-प्रदेश का हलन-चलन (कंपन) बंदकर, सभी कर्मों का क्षय कर आत्मा के अनंत आनंद को प्राप्त करता है । श्रुत के अध्ययन के बिना जन्मादि की पीड़ा का और उसके कारणों का ज्ञान नहीं होता और ज्ञान के बिना कोई भी जीव उसके नाश के लिए यत्न नहीं कर सकता । इन सब शुभ प्रयत्नों का मूल श्रुतज्ञान ही है, इसलिए श्रुतज्ञान ही जन्म, मरण, शोक आदि पीड़ा का नाशक कहलाता है । ऐसे श्रुतज्ञान को इस पद द्वारा नमस्कार करना है ।। श्रुतज्ञान जन्म, जरा, मरण का नाश करता है, वह बताया। अब वह किस प्रकार का सुख देता है, यह बताते हैं - कल्लाण-पुक्खल-विसाल-सुहावहस्स - कल्याणरूप (आरोग्य स्वरूप) ऐसे पुष्कल और विशाल सुख को देनेवाले। ___ कल्य अर्थात् आरोग्य। श्रुतज्ञान संपूर्ण और विशाल ऐसे आरोग्य रूप सुख को प्राप्त करवाता है। चिकित्सक शरीर के रोग का निदान करके आरोग्यप्रद औषध के आसेवन की रीति बताते हैं । इस औषध का आसेवन करके जीव जैसे शरीर के रोग से मुक्त बनकर आरोग्य के सुख का अनुभव कर सकते हैं, उसी प्रकार श्रुतज्ञान सबसे पहले आत्मा को लागू पड़े हुए अज्ञान, मोह, राग, द्वेष, कर्म वगैरह अनंत रोगों का आभास करवाता हैं। उसके बाद उनउन रोगो को उन्मूलित करनेवाले औषध तुल्य शुभानुष्ठान, शुभभावनाएँ, शुभध्यान, क्षपकश्रेणी, योगनिरोध आदि अनेक मार्ग बताता है । श्रुतज्ञान द्वारा बताए गए औषध तुल्य शुभानुष्ठान से साधक अशुभ क्रिया के अभ्यास को तोड़ते हैं और शुभभाव से अशुभभाव के संस्कारों का नाश करते हैं। धर्मध्यान द्वारा आर्त और रौद्रध्यान से मलिन हुई आत्मा को निर्मल करते हैं। शुक्लध्यान के मार्ग पर आगे बढ़कर क्षपकश्रेणी पर आरूढ होते हैं। उससे अज्ञान और मोहरूपी रोग का मूल से उन्मूलन होता
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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