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सूत्र संवेदना - २
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मेरे और पराए का भ्रम टूटने से सत्त्वशाली पुरुष संयम के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं । संयम और तप की साधना करते हुए विशिष्ट प्रकार के शास्त्र का अध्ययन करते हैं । शास्त्रयोग द्वारा सामार्थ्ययोग को प्राप्त कर उसके द्वारा चारित्र मोहनीय कर्म को जड से इस तरह खत्म कर देते हैं कि पुनः कभी भी उसकी प्राप्ति न हो । यहीं मोह का प्रस्फोटन है । पुनः बंध में या सत्ता में कभी न आ सके, उस तरह मोह का नाश मोहनीय जाल का प्रस्फोटन कहलाता है ।
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जिज्ञासा : श्रुतज्ञान मोह स्फोटन करता है, वैसे न कहकर मोह का प्रस्फोटन करता है वैसा क्यों कहा ?
तृप्ति : मोह को कुछ समय तक उदय में न आने देना, एक अपेक्षा से मोह का स्फोटन है और समूल मोह का नाश करना, वह प्रस्फोटन है। बहु 'कर्मी साधक कई बार संयम जीवन स्वीकार कर शब्द रूप शास्त्र का अध्ययन करते हैं । उसके कारण वे जब ऐसा जानते है कि, 'कषाय करने से दुर्गति मिलती है और दुर्गति में दुःख सहन करना पड़ेगा,' तब दुःख के डर से और सुख की इच्छा से वे भी जीवनकाल के दौरान कहीं कषाय न हो, उसका ध्यान रखते हैं, तब प्रथम नज़र से मोह कम हुआ वैसा लगता है। इस तरह मोह का हल्का होना अपेक्षा से मोह का स्फोटन कहलाता है । जब योग्य साधक किसी भी प्रकार की आशंसा के बिना गुरू आदि के विनयपूर्वक श्रुत का अध्ययन करता है, तब वह श्रुतज्ञान द्वारा पदार्थ की वास्तविकता को जान सकता है। इससे वह जड़ पदार्थों से विरक्त बनता है । वैराग्यपूर्वक त्याग के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए उसे अनुभव ज्ञान की प्राप्ति होती है । अनुभव ज्ञान द्वारा वह मोहनीय कर्म को मूल से नाश करता है, तब श्रुतज्ञान से मोह का प्रस्फोटन हुआ ऐसा कहलाता है।
3 सामर्थ्ययोग की विशेष समझ के लिए " नमोत्थुणं सूत्र” की फुटनोट नं. १ देखें ।
4 अनुभव ज्ञान- कषायै जब शांत पड़ते हैं, उपशम भाव की प्राप्ति होती है, तब आत्मा की कुछ झलक दिखती है । आत्मा अपने स्वभाव का कुछ अनुभव कर सकती है । उसे अनुभव ज्ञान कहते हैं ।
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