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पुक्खरवरदी सूत्र
विजयओ धम्मो सासओ वड्डर विजयतः धर्मः शाश्वत: वर्धतां
(मिथ्यावादीयों पर) विजय करवानेपूर्वक धर्म (श्रुतधर्म) सदा वृद्धि को प्राप्त हो ।
धम्मुत्तरं वड्डउ ।।४।। धर्मोत्तरं वर्धताम् ।।४।। (चारित्र) धर्म की वृद्धि में (भी) धर्म (श्रुतधर्म) वृद्धि प्राप्त करें।।४।। विशेषार्थ :
पुक्खरवर-दीवड्डे, धायइसंडे य जंबूदीवे य - पुष्करवर नाम के अर्ध द्वीप में, धातकी खंड में और जंबूद्वीप में ।
तिरछेलोक की रचना, मध्य में थाली के आकार वाले द्वीप और फिर चूड़ी के आकारवाले समुद्र तथा द्वीपों से हुई है अर्थात् प्रथम द्वीप-ज़मीन है, उसके आस-पास समुद्र है, उसके बाद द्वीप-ज़मीन है, उसके बाद समुद्र है और उसके बाद फिर ज़मीन है वगैरह । इस रचना के अनुसार तिरछालोक के बीच में जंबू नाम का द्वीप है और उसके मध्य में मेरु नाम का एक महान पर्वत है। उसके आस-पास समुद्र है । इसके बाद जो ज़मीनद्वीप है, उसमें धावडी वृक्ष के वन विशेष होने से उसे धातकी खंड कहते हैं। धातकीखंड के आस-पास समुद्र है । उस समुद्र के बाद जो ज़मीन-द्वीप है, उसका नाम पुष्करवर द्वीप है यह द्वीप पुष्कर अर्थात् कमलों द्वारा सुशोभित होने से, उसे पुष्करवर द्वीप कहा जाता है। उसका अर्ध भाग ही यहाँ ग्रहण करना है।
पुष्करवर द्वीप के मध्य भाग में गोल किले के आकारवाला मानुषोत्तर नाम का एक पर्वत है, जिससे पुष्करवर द्वीप के दो भाग होते हैं। उसके अन्दर के भाग में मनुष्य रहते हैं, पर बाहर के भाग में मनुष्य नहीं रहते। मतलब, जंबूद्वीप, धातकी खंड एवं अर्ध पुष्करवर द्वीप मिलकर अढ़ाई द्वीप