SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८० सूत्र संवेदना - २ देव-दाणव-नरिंद-गणचियस्स धम्मस्स सारमुलब्भ को पमायं करे ? ।।३॥ देव-दानव-नरेन्द्र-गणार्चितस्य धर्मस्य सारमुपलभ्य कः प्रमादं कुर्यात् ? ।।३।। देवेन्द्रों, दानवेन्द्रों और नरेन्द्रों के समूह से पूजे गए (श्रुत) धर्म के सार को प्राप्त करके कौन प्रमाद करें ? ।।३।। भो ! सिद्धे पयओ भोः ! सिद्धे (जिनमते) प्रयतः हे (श्रुतधर परमर्षियों ! आप देखें ।) सिद्ध (ऐसे जिनमत में) मैं प्रयत्न वाला हूँ । नमो जिणमए नमो जिनमताय मैं (उस सिद्ध ऐसे) जिनमत को नमस्कार करता हूँ । देवं-नाग-सुवन-किन्नर-गण-स्सब्भूअ-भावचिए संजमे सया नंदी देव-नाग-सुवर्ण-किन्नर-गण-सद्भूत-भावाचिंते संयमे सदा नन्दिः (इस प्रकार का जिनमत होते हुए) देव, नागकुमार, सुवर्णकुमार, किन्नर आदि के समुदाय से सच्चे भाव से पूजे गए ऐसे संयम में सदा वृद्धि होती है। और वह जिनमत कैसा है ? जत्थ लोगो पइढिओ . यत्र लोकः प्रतिष्ठितः जिसमें लोक ज्ञान, कारण रुप में प्रतिष्ठित है । (तथा) तेलुक्क-मञ्चासुरं इणं जगम् (जत्थ पइटिओ) त्रैलोक्य-मासुरै इदं जगत् (यत्र प्रतिष्ठितः) तीन लोक के मनुष्य तथा (सुर) असुरादि के आधार रूप यह जगत् (जिसमें ज्ञेय रूप में रहा है ऐसा जिनमत है।)
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy