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________________ भूमिका भावपूर्ण बनाने के लिए उसके सूत्र और उनके अर्थ जानना अनिवार्य है । इसलिए हमें यह भी जानना होगा कि इन सूत्रों के अर्थ को पढ़ने के लिए योग्य (अधिकारी) कौन है ? अभी चैत्यवंदन का अधिकार होने से चैत्यवंदन के सूत्रों को पढ़ने के लिए अधिकारी का विचार किया गया है, परंतु कोई भी सूत्र पढ़ना हो या कोई भी धर्मक्रिया संबंधी ज्ञान प्राप्त करना हो तो योग्यता का विचार करना अत्यावश्यक है; क्योंकि योग्यता के बिना उत्तम वस्तु की प्राप्ति सफल तो नहीं होती, परंतु कभी अनर्थकारी भी हो सकती है। योग्यता को जानने के लिए पूज्यपाद हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज ने 'ललितविस्तरा' ग्रंथ में निम्नोक्त तीन लक्षण बताए हैं । (१) अर्थी, (२) समर्थ, (३) शास्त्र से अनिषिद्ध (१) अर्थी : अर्थी से तात्पर्य है प्रयोजनवाला । चैत्यवंदन आदि क्रिया करने की अभिलाषा वाला । दूसरे कार्य की अपेक्षा चैत्यवंदन आदि अनुष्ठान को अधिक महत्त्व देनेवाला जीव 'अर्थी' कहलाता है । अन्य शास्त्रकारों ने सूत्र पढ़ने का अर्थी उसे कहा है जो १. सूत्र प्ररूपक गुरु का विनय करनेवाला हो, २. सम्यग् प्रकार से गुरु भगवंत से उन-उन सूत्रादि को जानने के लिए आया हो और ३. जो बात समझ में न आए उसमें जिज्ञासा रखनेवाला हो । 6. अर्थी समर्थः शास्त्रेणापर्युदस्तो धर्मेऽधिक्रियते इति विद्वत्प्रवादः, धर्म्मश्चैतत्पाठादि, कारणे कार्योपचारात् । यद्यैवमुच्यतां के पुनरस्याधिकारिण इति ? उच्यते एतद्बहुमानिनो, विधिपरा, उचितवृत्तयश्च । अर्थी धर्माधिकारी प्रस्तावात् तदभिलाषातिरेकवान् समर्थो निरपेक्षतया धर्म्ममनुतिष्ठन्न कुतोऽपि तदनभिज्ञाद् बिभेति शास्त्रेणापर्युदस्तः आगमेन अप्रतिकुष्टः । स च एवं लक्षणो य : (१.) त्रिवर्गरूपपुरुषार्थचिन्तायां धर्ममेव बहुमन्यते, (२.) इहलोकपरलोकयोर्विधिपरो, (३.) ब्राह्मणादिस्ववर्णोचितविशुद्धवृत्तिमांश्चेति = = ललितविस्तरा
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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