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________________ २७३ संसारदावानल स्तुति झंकार शब्द से युक्त, उत्तम निर्मल पंखुडीवाले कमल घर की भूमिका में वास करनेवाली14। हे सरस्वती देवी! मुझे मोक्ष का बरदान दो । शास्त्रों के प्रति परम भक्तिवाली और श्रुत की अधिष्ठात्री सरस्वती देवी ईंट, मिट्टी के बने बंगले में नहीं रहती । वह निर्मल पत्ते वाले, कुछ हिलते और हिलने के कारण चारों और फैली मकरंद की सुगंध से आकर्षित होकर भ्रमर वृंद जहाँ झंकार आवाज़ करते रहते हैं, वैसे कमल के घर में रहती हैं। इस कमल के घर का वातावरण पाँचों इन्द्रियों को अत्यंत सुखदायी है। कमल की शोभा इतनी अद्भुत है कि, आँख आकर्षित हुए बिना नहीं रहती। कमल की सुगंध ऐसी है कि नाक तरबतर हुए बिना नहीं रहता। इस सुगंध से आकर्षित हुए भ्रमरों का गुंजन भी अति कर्णप्रिय लगता है तथा कमल का मुलायम स्पर्श स्पर्शेन्द्रिय को आह्लादित किए बिना नहीं रहता, ऐसे कमल के घर में सरस्वती देवी का वास है । सरस्वती देवी के घर का वर्णन करने के बाद अब उनकी देह का वर्णन करते हुए कहते हैं ... छाया-संभार-सारे ! वरकमल-करे ! तार-हाराभिरामे ! - कांति के समूह से श्रेष्ठ15 जिसके हाथ में श्रेष्ठ कमल है वैसी एवं देदीप्यमान हार से मनोहर16। (ऐसी हे सरस्वती देवी ! मुझे मोक्ष दें।) 14.आमूल - मूल पर्यंत, आलोल-कुछ डोल रहा, वह आमूलालोल मूल के पूर्व प्रयोग किया गया आ - उपसर्ग मर्यादा या सीमा को सूचित करता है और लोल के पूर्व प्रयोग किया गया वहीं उपसर्ग लगभग अथवा कुछ का अर्थ बताता है । यह विशेषण कमल के उद्देश्य से लगाया गया है। धूली अर्थात् रज, पराग या मकरंद, उसकी बहुल-परिमल-बहुत सुगंध में । आलीढ़ - आसक्त, मग्न, चिपका हुआ । लोलालिमाला-लोल ऐसे अलियों की माला । लोल-चपल । अलि-भ्रमर । माला-हार, पंक्ति या श्रेणी, उसके झंकार शब्द से युक्त । सार-उत्तम । अमलदलकमल । अमल-निर्मल । दल-पत्तियों वाला, कमल - वह अमल-दल-कमल । उस रूप आगारभूमि-रहने की जगह। उसमें निवासा-वास करनेवाली । यह पूरा सामासिक पद देवी का विशेषण है, वह संबोधनार्थ रखा गया होने से निवासे ! ऐसा प्रयोग किया गया है । 15.छाया-कान्ति, प्रभा या दीप्ति, उसका संभार-समूह या जथ्था । उसके साथ सारा-उत्तम, श्रेष्ठ, रमणीय। यह पद भी देवी का विशेषण है और संबोधन होने से छाया-संभार-सारे ! ऐसा प्रयोग हुआ है । 16.तार ऐसा जो हार उससे अभिराम, वह तार-हाराभिराम । तार-स्वच्छ, निर्मल या देदीप्यमान। हार कंठ का आभूषण । अभिरामा-मनोहर । यह भी देवी का विशेषण होने से संबोधन रूप है।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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