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________________ २७४ सूत्र संवेदना - २ सरस्वती देवी का पूरा शरीर तेज-पुंज से भरा हुआ है, जिसके कारण देखनेवाले को वह अत्यंत प्रिय लगती है और उसके एक हाथ में श्रेष्ठ कमल है और कंठ में देदीप्यमान हार है। ऐसे उत्तम अलंकार और हाथ में फूल के कारण उसके शरीर की शोभा में अत्यंत अभिवृद्धि हुई है। श्रुतदेवी के बाह्य शरीर का वर्णन करने के बाद, अब उसके आत्मस्वरूप (अंतरंग स्वरुप) को बताकर प्रार्थना करते हुए कहते हैं - वाणी-संदोह-देहे ! भव-विरह-वरं देहि मे देवी सारं - वाणी के समूह रूप देहवाली ! हे देवी ! आप मुझे सारभूत मोक्ष का वरदान दें । __ “वाणी का समूह ही जिसका शरीर है अर्थात द्वादशांगी ही जिसका शरीर है । वैसी हे श्रुतदेवी ! आप मुझे श्रेष्ठ मोक्ष प्रदान करें ।” सरस्वती देवी सदा के लिए श्रुतज्ञान के प्रति उपयोगवाली और श्रुत के प्रति प्रीतिवाली होने के कारण इस श्रुतदेवी को वाणी के संदोह रूप देहवाली कही गई है । इस प्रकार की श्रुतदेवी को बुद्धिस्थ करके साधक कहता है, “हे माँ शारदा ! मुझे आप में विश्वास है, श्रद्धा है, श्रुत की भक्ति से आप तो मोक्ष प्राप्त करोगे ही, परन्तु मुझमें भी आप जैसी श्रुतभक्ति पैदा करवाकर मोक्ष सुख प्राप्त करवाओ !" यद्यपि सरस्वती देवी संसार में है, भौतिक सुखों का आनंद ले रहे हैं, इसलिए प्रथम नज़र से देखते हुए उनके पास ऐसी प्रार्थना करने योग्य नहीं लगती, तो भी परमार्था से विचार करें तो ज़रूर समझ में आता है कि, श्रुत के प्रति उनकी तीव्र भक्ति ही उन्हें थोड़े समय में ‘भवविरह' रूप मोक्ष को प्राप्त करवाएँगी और उनकी उपासना, जाप या ध्यान करनेवालों को भी ये श्रुतदेवी श्रुतज्ञान में अनेक प्रकार से सहायक बनेंगी । जिससे साधक निर्विघ्न तरीके से श्रुत की साधना करके, भव की परंपरा को तोड़कर मोक्ष
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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