________________
२७७
२५७
संसारदावानल स्तुति थुई के जोड़े के तरीके से भी होता है तथा पाक्षिक, 'चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में यह स्तुति सञ्झाय के स्थान पर बोली जाती है। मूल सूत्र:
संसार-दावानल-दाह-नीरं, संमोह-धूली-हरणे समीरं । माया-रसा-दारण-सार-सीरं, नमामि वीरं गिरि-सार-धीरं ।।१।।
भावावनाम-सुर-दानव-मानवेन, चूला-विलोल-कमलावलि-मालितानि । ___ संपूरिताभिनत-लोक-समीहितानि, कामं नमामि जिनराज-पदानि तानि ।।२।। बोधागाधं सुपद-पदवी-नीर-पूराभिरामं, जीवाहिंसाविरल-लहरी-संगमागाहदेहं ।
चूला-वेलं गुरुगम-मणी-संकुलं दूरपारं, सारं वीरागम-जलनिधिं सादरं साधु सेवे ।।३।। आमूलालोल-धूली-बहुल-परिमलाऽऽलीढ-लोलालिमाला
झंकाराराव-सारामलदल-कमलागार-भूमिनिवासे ! । छाया-संभार-सारे ! वरकमल-करे ! तार-हाराभिरामे !, वाणी-संदोह-देहे ! भव-विरह-वरं देहि मे देवि ! सारं ।।४।।
पद-१६
संपदा-१६
अक्षर-२५२
अन्वयार्थ : संसार-दावानल-दाह-नीरं संसार रूपी दावानल के दाह को बुझाने में पानी के समान,