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________________ २५२ सूत्र संवेदना - २ वागीश्वरी देवी (सरस्वती देवी) सदा हमारे सुख के लिए हों । (हमें सदा सुख देनेवाली हों।) सरस्वती देवी गीतरति (गीतयशा) नाम के इन्द्र की पटरानी हैं । उन्हें श्रुतज्ञान के प्रति अति आदर है, वे श्रुतज्ञान और श्रुतज्ञानी की विशेष प्रकार से भक्ति करती हैं ? ‘आकृति गुणान् कथयति' इस न्याय से उनमें कैसे गुण होंगे, वे उनकी आकृति से ही ज्ञात हो जाता है। उनके शरीर का वर्ण गौर है और वह भी सामान्य नहीं, परन्तु मुचुकुंद के फूल, चंद्रमा, गाय के दूध और बरफ के जैसा विशिष्ट गौर वर्ण है । यद्यपि श्रुतदेवी का देह श्वेत वर्ण का है, उसको एक दृष्टांत द्वारा बता सकते थे, फिर भी ग्रंथकार ने चार दृष्टांत दिए हैं । उसके पीछे कोई अगम्य कारण होना चाहिए, परन्तु उसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। तो भी ऐसी कल्पना हो सकती है - मुचुकुंद का फूल जैसै श्वेत है, साथ में सुगंधित भी है । वैसे इस सरस्वती देवी का शरीर श्वेत तो है, साथ में शीलादि गुणों से सुगंधित भी है। चंद्र जैसे श्वेत है वैसे सौम्य भी है, उसी तरह चंद्रमा जैसी उज्ज्वल श्वेतवर्णवाली यह देवी श्वेतवर्ण के साथ सौम्याकृतिवाली भी है। गाय का दूध जैसे श्वेत होने के साथ पवित्र एवं गुणकारी भी है, वैसे श्वेतवर्णवाली इस देवी का जीवन पवित्र एवं श्रुतज्ञानरूपी गुण को प्रदान करनेवाला है। बरफ जैसे कड़ा है और कोमल (पानी रुप में) भी हो सकता है, वैसे यह देवी भी श्रुत के द्रोहियों के प्रति कठोर और शासन-भक्त के प्रति कोमल भी हो सकती है । इस प्रकार श्वेतवर्णवाली इस देवी में गुण की सुगंध, सौम्यता, पवित्रता, कठोरता, कोमलता आदि गुण भी हैं, वैसा बताने के लिए ये दृष्टान्त दिए होंगे, वैसा लगता है।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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