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कल्लाण-कंदं सूत्र
अब सरस्वती देवी किस प्रकार बिराजमान हैं और हाथ में क्या है,
यह
बताते हैं.
} 'सरोज- हत्था, कमले - निसन्ना वाएसिरी पुत्थय वग्ग हत्था' -
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सरस्वती देवी कमल के ऊपर बिराजमान हैं, उनके एक हाथ में पवित्रता का सूचक कमल है और दूसरे हाथ में ज्ञान का प्रतीक पुस्तकों का समूह है। इससे यह बताया गया है कि, उनके हृदय में ज्ञान का बहुमान है और ज्ञानी को सहायता देने का गुण है I
जिज्ञासा : वागीश्वरी देवी के शरीरादि का ऐसा वर्णन क्यों किया ?
तृप्ति : सरस्वती देवी का ध्यान करनेवाले के लिए यह आकृति का वर्णन अति उपयोगी बनता है, इसलिए यहाँ इस प्रकार वर्णन किया गया है ।
पसत्था अर्थात् प्रशस्ता, उत्तम, प्रशंसनीय अथवा जगत्-प्रसिद्ध । श्रुतज्ञान की प्राप्ति करवाने में सहायक वागीश्वरी देवी सरस्वती देवी जैन - जैनेतर जगत में भी अति प्रसिद्ध हैं । अनेक श्रुतप्रेमी सदा उनकी प्रशंसा करते हैं। उन्हें नमस्कार, पूजन वगैरह भी करते हैं तथा श्रुतज्ञान की प्राप्ति के समय तो सभी उन्हें अचूक याद करते हैं । महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य महाराज जैसे अनेक महापुरुषों ने इस सरस्वती देवी की साधना की और साधना से सिद्ध हुई इस सरस्वती देवी ने उनको शास्त्रों की रचना करने में अनेक प्रकार से सहायता भी की, इसीलिए उपाध्यायजी महाराज ने तो अपने सभी ग्रंथों के प्रारंभ में सब से पहले 'ऐं' कार' द्वारा उनको स्मृति में लाकर नमस्कार किया है ।
ऐसी सरस्वती देवी की प्रार्थना करते हुए ग्रंथकार श्री कहते हैं -
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सुहाय सा अम्ह सया पसत्था " हे माँ सरस्वती ! हम सभी ज्ञान के अभिलाषी हैं, श्रुतज्ञान हमारा श्वास और प्राण है । माँ शारदा ! इसमें हमें
5. ऐं यह सरस्वती देवी का बीज मंत्र है।