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________________ कल्लाण-केदं सूत्र २५१ और एक दृष्टिकोण से पदार्थ को देखकर किया गया होता है, जब कि जैन शास्त्र जगद्वर्ती सभी पदार्थों का वर्णन अनेक दृष्टिकोण से करते हैं । अतः वे जगत् के सूक्ष्म तथा बादर एवं रूपी और अरूपी सभी पदार्थों का यथार्थ दर्शन करवाते हैं । इसके अतिरिक्त जैनशास्त्र आत्मादि सर्व पदार्थों को एक नहीं लेकिन अनेक दृष्टिकोण से बताता है। पदार्थ विषयक ऐसा वर्णन अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता, इसीलिए स्वर्ग, पाताल और मनुष्य लोकरूप इस तीन जगत में जैनशासन प्रधान है। __ ऐसे जिनमत को मैं हमेशा मन, वचन और काया से नमस्कार करता हूँ। उसके प्रति प्रतिक्षण आदर एवं बहुमान धारण करता हूँ । यह गाथा बोलते हुए सोचना चाहिए, "मेरा कितना सद्भाग्य है कि सुख के मार्ग पर शीघ्र गमन करवानेवाला जैन शास्त्ररूप श्रेष्ठ वाहन मुझे मिला है । उसका सामर्थ्य कितना है कि, आज तक अभिमान करनेवाले कुवादियों के गर्व को भी उसने तोड़ दिया है और उसी कारण पंडित भी उसकी शरण में जाते हैं । तीनों जगत में श्रेष्ठ जिनमत को मैं दो हाथ जोडकर नमस्कार करता हूँ। उसके प्रति आदर धारण करता हूँ और इस शास्त्र के एक-एक वचन मेरे हृदय में परिणत हो जाए, उसके अनुसार मेरा जीवन बने, वैसी प्रभु से प्रार्थना करता हूँ ।” श्रुतज्ञान की स्तवना करके, अब उसकी अधिष्ठात्री सरस्वती देवी की स्तवना करते हुए कहते हैं । कुंदिंदु-गोक्खीर-तुसार-वन्ना, सरोज-हत्था, कमले निसन्ना वाएसिरी पुत्थय-वग्ग-हत्था, सुहाय सा अम्ह सया पसत्था ।। - मुचुकुंद के (मोगरे के) फूल, चंद्रमा, गाय का दूध और बरफ जैसे वर्णवाली (श्वेत कायावाली), एक हाथ में कमल और दूसरे हाथ में पुस्तक के समूह को धारण करनेवाली, कमल के ऊपर बैठी हुई (तथा) प्रशस्त-उत्तम
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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