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________________ अरिहंत चेइयाणं सूत्र २३१ इसीलिए वह निश्चित होता है । इस विश्वास के कारण यह चैत्यवंदन जैसा अति कठिन काम भी गंभीरता से धीरजपूर्वक पार कर सकता है । बुद्धि से प्रतीत भावों को हृदय तक पहुँचाना, आत्मा में उसकी संवेदनाएँ प्रगट करना आसान नहीं है। उसके लिए अथक परिश्रम और अत्यंत धीरज की ज़रूरत है । इस पद का उच्चारण करते हुए साधक सोचती है, “कायोत्सर्ग की इस क्रिया को सफल करने के लिए मुझे धीरता और गंभीरता से यत्न करना चाहिए। थोडा प्रयत्न करके, ‘इतना प्रयत्न कर रहा हूँ तो भी मुझे फल मिलता ही नहीं है। ऐसी दीनता करूँगा तो इस क्रिया का फल मैं नहीं प्राप्त कर पाऊँगा, इसीलिए धैर्य धारणकर गंभीरतापूर्वक मुझे ऐसा यत्न करना चाहिए कि, जिससे शीघ्र फल की प्राप्ति हो ।” धृतिपूर्वक कायोत्सर्ग करनेवाला भी सूत्र-अर्थादि की धारणा न कर सके तो उसका कायोत्सर्ग सफल नहीं होता। इसीलिए कायोत्सर्ग के चौथे साधन 'धारणा' को बताते हैं - (वड्डमाणिए) धारणाए - धारणा से (बढ़ती हुइ धारणा से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ ।) धारणा अर्थात् यादशक्ति, बोध की अविच्युति याने बोध की विस्मृति का अभाव । क्रिया में आनेवाले सूत्र, उनका अर्थ, आलंबन और मुद्रा आदि के पूर्ण स्मरणपूर्वक का मानसिक परिणाम धारणा है । धारणायुक्त जीव को सूत्रादि संबंधी लेश मात्र भी विस्मरण नहीं होता । तीव्र यादशक्ति के कारण कायोत्सर्ग करते हुए बोले जा रहे सूत्र, उनके अर्थ और सूत्रार्थ से वाच्य जो अरिहंतादि पदार्थ हैं, उन सब के ऊपर क्रमिक अनुसंधानपूर्वक वह पूरा ध्यान दे सकता है । चैत्यवंदन के प्रारंभ से अंत तक के एक-एक पद उसके भावपूर्वक एकवाक्यता से स्मृति में लाकर कायोत्सर्ग किया जाए तो धारणापूर्वक का कायोत्सर्ग कहलाता है ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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