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________________ २३२ सूत्र संवेदना - २ धारणापूर्वक क्रिया करने से आत्मा के ऊपर क्रिया के दृढ़ संस्कार पड़ते हैं । कभी भी यह क्रिया की या नहीं, यह बोला या नहीं वैसी शंका या भ्रम नहीं होता। धारणा के कारण जैसे साधक को उन सूत्रादि का स्मरण होता है, वैसे उसकी चित्त की परिणति भी ऐसी तैयार होती है कि वह वस्तु के क्रम को भी यथायोग्य तरीके से ग्रहण कर सकता है अर्थात् क्रम के अनुसार सूत्र के प्रत्येक शब्द, उसके अर्थ और उससे प्राप्त होनेवाले पदार्थ की धारणा कर सकता है । ___ उत्तम प्रकार के मोतियों को गूंथनेवाला व्यापारी जानता है कि किसके बाद कौन-सा मोती गूंथने पर माला देखने में सुंदर लगेगी । इसलिए वह उसी क्रम में उस मोती को गूंथने का प्रयास करता है, लेश मात्र भी भूल नहीं करता । जिससे सुंदर माला तैयार होती है । वैसे ही चैत्यवंदन करनेवाला साधक भी शास्त्र में जिस प्रकार चैत्यवंदन करने को कहा गया है, उसे बराबर से ध्यान में रखकर धारणापूर्वक सूत्र के एक-एक शब्द को बोलते समय परमात्मा के साथ आत्मा का अनुसंधान करने का प्रयत्न करता है । जिससे चैत्यवंदन काल में साधक अलौकिक आनंद की अनुभूति कर सकता है । इस प्रकार बढ़ती हुई धारणा से भावपूर्वक की जानेवाली चैत्यवंदन की क्रिया अमृत अनुष्ठान रूप बनती है । धारणा का यह परिणाम (भाव) भी ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्रगट होता है । ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्रगट हुआ 'धारणा' नाम का गुण मुख्यतया तीन भेदवाला होता है । १. बोलते समय प्रत्येक सूत्र में परस्पर एकवाक्यता जोड़कर संपूर्ण सूत्र 10. चैत्यवंदन करने के लिए कैसी यादशक्ति चाहिए यह बताते हुए ललितविस्तरा में धारणा' के निम्नलिखित लक्षण बताए गए हैं - १. अविच्युति, वासना और स्मृति धारणा के ये तीन प्रकार हैं - अविस्मरण, सुनी गई और जानी गई बात को कुछ समय तक न भूलना, अविच्युति है। अविच्युति से आत्मा के ऊपर एक प्रकार का संस्कार पड़ता है, उसे वासना कहते हैं और इस वासना के कारण निमित्त मिलने पर उन वस्तुओं का स्मरण पुनः पुनः हो, उसे स्मृति कहते हैं।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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