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________________ सूत्र संवेदना - २ बढ़ती हुई मेधा से यह कायोत्सर्ग किया जाए, तो ही वह इष्टफल सिद्धि का कारण बन सकता है । ऐसी बुद्धि या बुद्धिपूर्वक के प्रयत्न के बिना जड़ता से किया गया कायोत्सर्ग इष्टफलसिद्धि का कारण नहीं बनता। जड़ता का अर्थ यहाँ मात्र बुद्धि का अभाव न समझते हुए शब्द के मर्म को प्राप्त करने के विशेष प्रयत्न का अभाव समझना है। इससे यह निश्चित होता है कि कायोत्सर्ग को सफल बनाने के लिए मन की शून्यता तो नहीं ही चलती, पर परन्तु सूत्र या सूत्र के सामान्य अर्थ की मात्र विचारणा भी नहीं चलती । कायोत्सर्ग की सफलता के लिए तो बुद्धिपूर्वक शब्द के विशेष भाव को समझकर उसके भाव में लीन होने के लिए विशेष प्रयत्न करना आवश्यक 1 २२८ यह पद बोलने से पहले मन को निम्नोक्त भावों से भावित करना चाहिए - “कायोत्सर्ग में बोले जानेवाले प्रत्येक पद उसके भाव तक पहुँचने के लिए बोलने हैं। जब तक शब्द के सूक्ष्म भाव को समझकर उस भाव में लीन होने का मैं यत्न नहीं करूँगा, तब तक यह कायोत्सर्ग मेरी इष्टफलसिद्धि का कारण नहीं बन सकता ! इसी कारण मिली हुई बुद्धि का उपयोग करके यह पद इस प्रकार बोलूँ कि जिसके कारण उस पद के मर्म को प्राप्त करके उन भावों में मैं लीन होने का यत्न कर सकूँ ।" श्रद्धा और मेधापूर्वक चैत्यवंदन करनेवाले साधक को भी सूत्र के रहस्यों को जानकर सूत्रार्थ के माध्यम से प्रभु के साथ एकरूपता करने के लिए धृति की अत्यंत आवश्यकता रहती है । इसीलिए अब कायोत्सर्ग का तीसरा साधन 'धृति' कैसी होनी चाहिए, वह बताते हैं - (वढमाणिए) लीइए - धृति से (बढ़ती जाती धृति से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ ।) धृति से कायोत्सर्ग करना है अर्थात् रागादि की विह्वलता के बिना मन में दुःखादि की चिंता से रहित बनकर, कृतनिश्चयी बनकर, कायोत्सर्ग करना है।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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