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________________ अरिहंत चेइयाणं सूत्र जिज्ञासा : श्रावक जब साक्षात् पूजन आदि करता है तब क्या उसे आरंभ-समारंभ के कारण हिंसाकृत पाप नहीं लगता? तो फिर अगर अनुमोदना से वह पूजन आदि का लाभ ले ले पर साक्षात् उसे न करे तो चलता है ? २१९ तृप्ति : श्रावक जब साक्षात् पूजन आदि करता है, तब आरंभ समारंभ तो अवश्य होता है, पर श्रावक के लिए महारंभ - समारंभ से छूटने का उपाय भी यह पूजन आदि ही है, इसलिए श्रावक के लिए वह कर्तव्य बन जाता है। तदुपरांत श्रावक अभी तक ऐसी भूमिका में हैं कि, वे उत्तम द्रव्यों के आधार पर ही उत्तम भाव निष्पन्न कर सकते हैं। रागादि के परवश श्रावक संसार के क्षेत्र में अच्छे द्रव्यों का उपयोग करके स्वयं तो रागादि से पीड़ित होते हैं, परन्तु अन्य के रागादि में भी निमित्त बनते हैं । दूसरी तरफ श्रावक जब उत्तम द्रव्यों से भगवान की भक्ति करता है, तब भगवान स्वयं रागरहित होने से भगवान की तरफ से राग वृद्धि का कोई कारण उसे प्राप्त नहीं होता; उत्तम द्रव्यों से की गई परमात्मा की भक्ति, रागादि रहित परमात्मा के प्रति विशेष प्रीति प्रगट करती है । प्रीतिपूर्वक की गई यह भक्ति ही जीव को परमात्मा के वीतरागादि गुणों की ओर ले जाती है। धीरे-धीरे उत्कृष्ट बनती हुई और बढ़ती जाती यह भक्ति भव्यात्मा को संपूर्ण रागादि रहित वीतराग स्वरूप बना देती है । वीतराग बनकर वह उत्तम आत्मा सभी कर्म को क्षय कर मोक्ष में जाती है। मोक्ष में जाते ही उसकी ओर से जगत् के जीव मात्र को अभय की प्राप्ति होती है । इस तरह द्रव्य पूजा सर्व जीवों को निर्भय बनाने का उत्तम मार्ग है। इसीलिए श्रावकों के लिए साक्षात् पूजनादि करने की भगवान की आज्ञा है । मुनि भगवंत तो द्रव्य के बिना भी उत्तम भावों द्वारा भक्ति कर सकते हैं, इसलिए उनके लिए द्रव्य भक्ति का विधान नहीं है, तो भी उपदेश द्वारा
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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