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________________ २१८ सूत्र संवेदना - २ पूजन : केसर, चंदन, कस्तूरी, जल, पुष्प, धूप, दीपक आदि उत्तम सामग्री से परमात्मा की पूजा करना पूजन है । सत्कार : कीमती वस्त्रों या उत्तम कोटी के रत्नजड़ित सुवर्ण के अलंकारों वगैरह से परमात्मा की भक्ति करना सत्कार है । बाह्य सामग्री के राग को तोड़ने के लिए वंदन करने के बाद भी श्रावक श्रेष्ठ सामग्री से - उत्तम वस्त्र, अलंकारों से - परमात्मा की भक्ति करता है क्योंकि जब तक पौद्गलिक वस्तुओं के प्रति राग मंद न हो, तब तक वीतराग भाव के सन्मुख होना सम्भव नहीं है । जड़ पुद्गलों के सहारे शुभ अशुभ भाव करने की आदत वाले साधक उत्तम प्रकार के पूजन और सत्कार की सामग्री लेकर जब परमात्मा की भक्ति में लीन बनते हैं, तब अनेक भवों में एकत्रित किए कुकर्मों का विनाश करते हैं, रागादि के कुसंस्कारों को शिथिल करते हैं, श्रेष्ठ कोटि के पुण्य का अनुबंध करते हैं और गुणसंपत्ति के स्वामी बनते हैं । जिज्ञासा : श्रावक तो साक्षात् पूजन और सत्कार करके उसका फल प्राप्त करता ही है, तो उसे उस निमित्त से कायोत्सर्ग किसलिए करना चाहिए ? और आरंभ से रहित ऐसे साधु को आरंभ युक्त पूजन-सत्कार करना ही नहीं है, तो साधु को कायोत्सर्ग द्वारा उसकी अनुमोदना क्यों करनी चाहिए ? तृप्ति : जैसे धनार्थी जीव को अधिक-अधिक धन प्राप्ति की इच्छा रहती है, उसी प्रकार मोक्षार्थी जीव को भी मोक्ष के कारणभूत भगवान की भक्ति का लाभ ज्यादा से ज्यादा मिले वैसी इच्छा रहती ही है । इसी कारण साक्षात् भगवान की भक्ति करने के बाद भी अपनी की हुई भक्ति से असंतुष्ट श्रावक, दूसरों के किए हुए पूजा-सत्कार आदि रूप भक्ति के अनुमोदनार्थं कायोत्सर्ग करते हैं । 5. भत्तीए जिणवराणं खिजंति पुव्वसंचिया कम्मा । - ठाणांगसूत्र टीका
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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