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________________ अरिहंत चेइयाणं सूत्र यह पद बोलते हुए साधक सोचता है, “इस प्रतिमा को वंदन करके अनेक भव्यात्माओं ने अपनी आत्मा पर रहे हुए गाढ़ मिथ्यात्व के मल को दूर करके सम्यग्दर्शन के शुद्ध भावों को प्राप्त किया होगा। अज्ञान के पटलों को भेदकर, सम्यग्ज्ञान का प्रकाश प्राप्त किया होगा। रागादि दोषों को दूर करके वैराग्य भाव की वृद्धि की होगी । हे नाथ ! मैं उनके उन भावों की अनुमोदना करता हूँ और इस कायोत्सर्ग द्वारा वैसे भावों की प्राप्ति मुझे हो, ऐसी भावना रखता हूँ ।” २१७ जिज्ञासा : “वंदनादि निमित्त से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ" क्या ऐसा बोलकर कायोत्सर्ग करने से वंदनादि का फल मिल सकता है ? तृप्ति : हाँ, अवश्य मिल सकता है । चूँकि जैनशासन, करण, करावण और अनुमोदन का समान फल मानता है और परमात्मा की भक्ति रूप वंदन-पूजन-सत्कार आदि की अनुमोदना के लिए यह कायोत्सर्ग किया जाता है । इससे कायोत्सर्ग से वंदन का फल जरूर मिल सकता है, परन्तु इतना ध्यान में रहना चाहिए कि, यह कायोत्सर्ग वंदन के अनुमोदनार्थ है, और वास्तविक अनुमोदना वहीं कहलाती है, जिसमें यथाशक्ति प्रयत्न हो । जैसे वंदनादि द्वारा रागादि दोषों से दूर होकर वीतरागादि भावों के सन्मुख जाने का प्रयत्न किया जाता है, वैसे ही अगर कायोत्सर्ग काल में भी मनवचन काया की एकाग्रतापूर्वक वीतराग भाव को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाए, तो जरूर कायोत्सर्ग से भी वंदन का फल मिल सकता है, शब्द बोलने से फल नहीं मिल सकता । मात्र पूअण वत्तियाए, सक्कार - वत्तियाए पूजन के निमित्त से, सत्कार के निमित्त से (मैं कायोत्सर्ग करता हूँ ।) - अरिहंत परमात्मा के पूजन से और सत्कार से प्राप्त होनेवाले फल को पाने के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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