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________________ २१६ सूत्र संवेदना - २ वैसे तो कायोत्सर्ग की क्रिया 'अन्नत्थ' सूत्र बोलने के बाद करनी है, तो भी यहाँ ऐसा प्रयोग क्रिया की सन्मुखता बताने के लिए किया जाता है । वंदण-वत्तियाए - वंदन के निमित्त से (मैं कायोत्सर्ग करता हूँ) अरिहंत चैत्य के वंदन से जो फल प्राप्त होता है, वह फल प्राप्त करने के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । वंदणः अनंत गुणों के धारक अरिहंत परमात्मा के प्रति बहुमान भाव को प्रगट करनेवाली मन, वचन, काया की प्रवृत्ति को वंदन कहते है। परमात्मा महान हैं और उनकी अपेक्षा मैं हीन स्तर का हूँ ऐसा मन का परिणाम, ‘नमो जिणाणं' आदि बहुमान भाव को व्यक्त करनेवाला वाणी का व्यापार तथा बहुमान भाव को प्रगट करनेवाली दो हाथ जोड़कर सिर झुकाकर, घुटनों को टेककर विधिपूर्वक की जानेवाली काया की क्रिया को वंदन कहते हैं । इस प्रकार बहुमानपूर्वक परमात्मा को वंदन करने से चित्त आह्लादित होकर वीतराग भाव की तरफ ढलता है, जिसके फलस्वरूप सांसारिक पदार्थों का आकर्षण घटता है । परमात्मा के साथ चित्त का अनुसंधान होने से अनादिकालीन राग, द्वेष, मोह और अज्ञान के कुसंस्कार नाश होते जाते हैं और आत्मा परमात्मभाव के अत्यंत नज़दीक जा सकती है। इस प्रकार आत्मा का परमात्म भाव की तरफ़ का प्रसर्पण ही सच्चे अर्थ में वंदन है । वत्तियाए = निमित्त को निमित्त शब्द, कारण और फल दो अर्थ में प्रयुक्त होता है । यहाँ 'निमित्त' शब्द को फल अर्थ में ग्रहण किया है अर्थात् कि वंदनादि पदों के साथ जुड़ा 'निमित्त' शब्द यह बताता है कि, “मैं वंदनादि के फल को प्राप्त करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ ।" । 4. निमित्त शब्द के दो अर्थ होते हैं : (१) कारण दा.त. उपादान के साथ निश्चित निमित्त मिले तब कार्य होता है - यहाँ निमित्त शब्द कारणवाची है । (२) फलउप्रयोजन : दा.त. 'कर्मक्षय के निमित्त से में तप करता हूँ । इसमें तपस्या का प्रयोजन, फल कर्मक्षय है । यहाँ निमित्त शब्द फलवाची है।'
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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