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________________ अरिहंत चेइयाणं सूत्र निर्विकारी अरिहंत परमात्मा की प्रतिमा का दर्शन, योग्य आत्मा के चित्त आह्लाद उत्पन्न करता है, समाधि भाव को प्रगट करता है और चित्त की प्रसन्नता का कारण बनता है। इस तरह चित्त के शुभभाव का कारण होने से अरिहंत की प्रतिमा को चैत्य' कहते हैं । संक्षेप में शुभ चित्त का कारण अथवा शुभ चित्त का कार्य, दोनों होने से अरिहंत की प्रतिमा 'चैत्य' कहलाती है । इसका अर्थ यह हुआ कि इस प्रतिमा के दर्शन से जिसके हृदय में शुभभाव प्रगट होते हों अथवा दर्शन, वंदनादि द्वारा जो शुभभाव को प्रगट करने के लिए प्रयत्न करतें हो, उनके लिए प्रतिमा चैत्य बनती है, परन्तु प्रतिमा देखकर जिनको शुभभाव नहीं आते और पूजन सत्कारादि द्वारा जो शुभभाव के लिए यत्न भी नहीं करते, उनके लिए यह प्रतिमा चैत्य नहीं कहलाती । २१५ - यह पद बोलते हुए 'नमोऽत्थु णं' में अरिहंत के जो गुण बताए हैं, वैसे स्वरूप वाले अरिहंत परमात्मा की यह प्रतिमा है और 'इस प्रतिमा के वंदन, पूजनादि से प्राप्त होनेवाले फल मुझे इस कायोत्सर्ग से प्राप्त हों !' ऐसे भाव प्रगट करने हैं । ऐसे भावपूर्वक कायोत्सर्ग करने से कायोत्सर्ग में विशेष प्रकार से मन-वचन काया की एकाग्रता प्राप्त होती है । एकाग्रतापूर्वक किया हुआ अरिहंत का ध्यान अरिहंत के गुणों का आंशिक आस्वाद करवाता है । = 'करेमि काउस्सग्गं' 'मैं कायोत्सर्ग करता हूँ;' इस पद को 'निरुवसग्ग-वत्तियाए' पद के बाद जोड़ना है । इसके द्वारा 'अरिहंत चैत्यों के वंदनादि निमित्त से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ,' ऐसा अन्वय प्राप्त होता है। 2. चित्त शब्द में ष्यम् प्रत्यय लगाकर यह शब्द बना है । इसका अर्थ चित्त अर्थात् अंतःकरण और उसका भाव वह चैत्य अथवा चित्त का कर्म (कार्य) चैत्य है (अथवा ) चैत्यं =जिनौकः तद्विम्बम् (अभिधान चिंतामणी कोष) कर्म का अर्थ क्रिया भी होता है, तब चित्त की अंतःकरण की क्रिया वह चैत्य / अरिहंत की प्रतिमा प्रशस्त समाधियुक्त चित्त को उत्पन्न करता है, इसलिए अरिहंत की प्रतिमा को चैत्य कहा जाता है । 3. कायोत्सर्ग संबंधी विशेष विवरण के लिए देखें- 'सूत्रसंवेदना' भा. १ में 'अन्नत्थ सूत्र ।' -
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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