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________________ २१४ सूत्र संवेदना - २ बढती हुई श्रद्धा से, मेधा से, धृति से, धारणा से और अनुप्रेक्षा से मैं कायोत्सर्ग में रहता हूँ । संपदाओं के नाम तथा हेतु : (१) अभ्युपगम संपदा : अरिहंतचेइयाणं करेमि काउस्सग्गं ।। इन पदों द्वारा काउस्सग्ग करने की प्रतिज्ञा का स्वीकार किया जाता है, इसलिए इसे अभ्युपगम संपदा कही जाती है । (२) निमित्त संपदा : वंदणवत्तियाए... निरूवसग्गवत्तियाए । इस संपदा के पद काउस्सग्ग के निमित्त सूचित करते हैं, इसलिए इसे निमित्त संपदा कही जाती है । (३) हेतु संपदा : सद्धाए... ठामि काउस्सग्गं । इस संपदा के सात पदों में काउस्सग्ग सम्यग् तरीके से निष्पन्न करने के उपाय बताए हैं, इसलिए इसे हेतु संपदा कही जाती है । विशेषार्थ : अरिहंतचेइयाणं करेनि काउस्सग्गं - अर्हत् चैत्यों के (वंदनादि के निमित्त से) मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । जो राग-द्वेष आदि दोषों से रहित हैं, अनंत ज्ञानादि गुणों से युक्त हैं तथा देव और देवेन्द्र भी जिनकी आठ महाप्रतिहार्य से पूजा करते हैं, उन्हें अरिहंत' कहते हैं । ऐसे अरिहंत परमात्मा की मूर्ति, मंदिर या स्तूप आदि को चैत्य कहते हैं। 1. अरिहंत की विशेष समझ के लिए देखें नवकार मंत्र'- सूत्रसंवेदना भा-१
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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