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अरिहंत चेइयाणं सूत्र
२१३ इस छोटे से सूत्र में भरे गहरे रहस्य को जानकर यदि भावपूर्वक यह सूत्र बोला जाए और श्रद्धा मेधा आदि भाव जीव के लिए सहज बन जाएँ, तो जीव कायोत्सर्ग और अन्य क्रियाओं द्वारा भी आत्मिक उन्नति के शिखर पर पहुँच सकता है । मूलसूत्र :
अरिहंतचेइयाणं करेमि कामस्सग्गं । वंदण-वत्तियाए पूअण-वत्तियाए सक्कार-वत्तियाए सम्माण-वत्तियाए बोहिलाभ-वत्तियाए निरुवसग्ग-वत्तियाए सद्धाए मेहाए धीइए धारणाए अणुप्पेहाए वड्डमाणीए,
ठामि काउस्सग्गं । पद-१५
संपदा-३ अक्षर-८९ अन्वय सहित संस्कृत छाया और शब्दार्थ : अरिहंतचेइयाणं वंदण-वत्तियाए, पूअण-वत्तियाए, सक्कार-वत्तियाए, सम्माण-वत्तियाए, बोहिलाभ-वत्तियाए, निरुवसग्ग-वत्तियाए । अर्हत्चैत्यानां वंदन-प्रत्ययं, पूजन-प्रत्ययं, सत्कार-प्रत्ययं, सन्मान-प्रत्ययं, बोधिलाभ-प्रत्ययं, निरुपसर्ग-प्रत्ययं ।
अरिहंत चैत्यों के वंदन के निमित्त से, पूजन के निमित्त से, सत्कार के निमित्त से, सम्मान के निमित्त से, बोधिलाभ के निमित्त से, मोक्ष के निमित्त से ।
काउस्सग्गं करेमि । कायोत्सर्गम् करोमि। मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। (अब कार्योत्सर्ग किस प्रकार करते हैं, उसका वर्णन करते हुए कहते हैं।) वड्डमाणीए सद्धाए, मेहाए, धीइए, धारणाए, अणुप्पेहाए काउस्सग्गं ठामि । वर्धमानया श्रद्धया, मेधया, धृत्या, धारणया, अनुप्रेक्षया कायोत्सर्गं तिष्ठामि ।