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सूत्र संवेदना - २
अनेक उपाय बताए हैं । उनमें सबसे महत्व का उपाय सामायिक है । वह सामायिक क्या है ? उसे कैसे करना चाहिए ? इत्यादि बातें 'सूत्रसंवेदना भाग-१' में बताई गई हैं ।
सामायिक जैसे शुभानुष्ठान को बताकर अरिहंत परमात्मा ने हम पर जो अनन्य उपकार किया है, उस उपकार के स्मरण के लिए, उनके गुणों को स्व में प्रस्फुटित करने के लिए एवं उनके वचनों के पालन का सामर्थ्य उत्पन्न करने के लिए उनकी बार-बार वंदना की जाती है । भावपूर्वक की हुई वंदना ही 'चैत्यवंदन' है । __यह चैत्यवंदन क्या है ? उसे कौन कर सकता है ? उसके लिए किन सूत्रों की जरूरत पड़ती है ? उसके अर्थ व भावार्थ क्या हैं ? उन सूत्रों को बोलते हुए कैसी संवेदना होनी चाहिए । इसकी जानकारी अब इस 'सूत्र संवेदना-२' में देखने को मिलेगी । चैत्यवंदन क्या है ?:
अरिहंत परमात्मा के बाह्य और अंतरंग स्वरूप को पहचानकर, उनके लोकोत्तर स्वरूप का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करके, उनके जैसे गुणों को प्राप्त करने के लिए, उन गुणों के साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए, परमात्मा के प्रति आदर और बहुमानपूर्वक उनके वंदन के लिए विधिपूर्वक की जानेवाली मन वचन काया की शुभ प्रवृत्ति चैत्यवंदन है । - अरिहंत परमात्मा के लोकोत्तर स्वरूप को समझाने के लिए गणधर भगवंतों ने 'नमोत्थु णं' आदि सूत्र की रचना की है । इन सूत्रों के शब्दों को आत्मसात् करके साधक ज्यों-ज्यों चैत्यवंदन की क्रिया में आगे बढ़ता है, त्यों-त्यों उसकी आँखों के सामने परमात्मा के एक-एक गुण तैरने लगते हैं। परमात्मा को परोपकारिता, वीतरागता, सर्वज्ञता, मार्गदर्शकता, अनंत करुणा, अचिंत्य सामर्थ्य आदि गुणों के प्रति साधक का बहुमान भाव बढ़ता जाता है । ये परमात्मा ही मेरे परम सुख के साधन हैं, यह उसको स्पष्ट