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भूमिका
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इस जगत् में मुख्य दो पदार्थ हैं : जीव एवं जड़ । इन दोनों पदार्थो पर सबसे बड़ा उपकार अरिहंत भगवंतों का है । उन्होंने अपने केवलज्ञान में जड़ और चेतन का वास्तविक स्वरूप देखकर उसे जगत् के जीवों को समझाया तथा सन्मार्ग की स्थापना करके जीवों को सुख का मार्ग बताया है । अगर इस तरह उन्होंने सन्मार्ग की स्थापना न की होती, तो इस जगत् में कोई भी जीव थोड़ा भी सुख प्राप्त न कर पाता । जगत् में जीव बाह्य या अंतरंग जिस किसी भी सुख का अनुभव करता है, एक मात्र कारण है प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से की गई भगवद्वचन की
उसका
आराधना...
भगवान के सब वचन, दुःख के कारणभूत राग-द्वेष आदि दोषों का दर्शन करवाते हैं और सुख के साधनभूत समता आदि गुणों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करवाते हैं । समता को प्राप्त करवाने वाले ऐसे हितकारी वचनों की उपेक्षा करने के कारण ही जगत् में जीव अनादिकाल से दुःखी हो रहे हैं ।
परमात्मा के शासन के प्रत्येक अनुष्ठान समता को परम लक्ष्य बनाकर उसे पाने के लिए सहायक बनते हैं । परमात्मा ने समता को सिद्ध करने