SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ सूत्र संवेदना - २ ऐसे चैत्यवंदन से उसे सामान्य पुण्यबंध और कर्मनिर्जरा भी होती है। जिसके कारण भविष्य में सभी संयोग प्राप्त करके वह अवश्य विशेष लाभ को प्राप्त कर सकता है । जिनमें ऐसे सामान्य भाव भी नहीं होते मात्र कुल मर्यादा से या गतानुगतिक की तरह ही जो चैत्यवंदन की क्रिया करते हैं और अर्थ के विचार के बिना ही प्रार्थनारूप इन शब्दों को बोलते हैं, उनके लिए यह प्रार्थना सफल नहीं होती। __ ये दोनों गाथाएँ गणधरकृत हैं और इसके बाद की तीन गाथाएँ गीतार्थ गुरु भगवंतों की बनाई हुई हैं । भाववृद्धि का कारण होने से बाद में उनको यहाँ जोडा गया है । वारिजइ जइवि नियाणबंधणं वीयराय ! तुह समए तहवि मम हुज सेवा भवे भवे तुम्ह चलणाणं - हे वीतराग ! यद्यपि आपके सिद्धांत में नियाणा करने का निषेध किया गया है, तो भी भवोभव आपके चरणों की सेवा मुझे प्राप्त हो ! धर्म के बदले में इहलोक या परलोक संबंधी किसी भी वस्तु की आकांक्षा-इच्छा रखना या उसकी माँग करना, निदान12 कहलाता है । जैन सिद्धांत के अनुसार सभी धर्मक्रियाएँ निराकांक्ष भाव से करनी चाहिए, इसलिए उपर्युक्त प्रार्थना प्रथम नज़र से देखने पर तो निदान स्वरूप 12.निदान : धर्म के बदले में इस लोक या परलोक संबंधी भौतिक सुख की माँग करना निदान है। उसके तीन प्रकार हैं १. रागगर्भित, २. द्वेषगर्भित, ३. मोहगर्भित। १. रागगर्भित : 'मेरे तप के प्रभाव से मुझे चक्रवर्ती की स्त्री जैसा स्त्रीरत्न मिलें ।'राग के कारण किया गया संभूति मुनि का यह नियाणा रागगर्भित निदान कहलाता है। २. द्वेषगर्भित : 'म तप का कोई फल हो तो मैं भवोभव गुणसेन को मारनेवाला होऊँ ।' ऐसे द्वेष से किया गया अग्निशर्मा के नियाणा को द्वेषगर्भित नियाणा कहा जाता है । ३. मोहगर्भित धर्म से ही भौतिक सुख मिलता है, वैसा सुना हो, इसलिए मुझे भवोभव धर्म मिले, जिससे दिव्य सुख मिले और अच्छी तरह से मौज किया जा सके ऐसा नियणा किया जाय, तो मोह गर्भित नियाणा है।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy