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________________ जयवीयराय सूत्र (प्रार्थना सूत्र ) “हे नाथ ! ये आठ अमूल्य गुण मुझे मात्र इस भव में ही नहीं चाहिए, बल्कि जब तक मेरा मोक्ष न हो, तब तक झुंड़ो जितने भव करने पड़े, उन तमाम भवों में मुझे इन विशिष्ट आठ वस्तुओं की प्राप्ति हो । अब मेरा कोई भव ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिसमें मेरे पास ये आठ गुण न हों !” २०१ " इन पदों द्वारा जिन्हें ये आठ गुण प्राप्त नहीं वे उन गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं और जिन्हें आंशिक रूप से भी ये गुण प्राप्त हुए हैं, वे उससे ऊपर के स्तर के गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं। इस प्रकार पुनः पुनः प्रार्थना करने से उन-उन गुणों के प्रति आदर प्रगट होता है, उन गुणों को प्राप्त करने की तीव्र लालसा जागृत होती है, गुणों के प्रति आदर ही दोष के राग को घटाता है और दोष के पक्षपात से बंधे कर्मों का विनाश होता है । प्रार्थना के बल से कर्मों का विनाश होने से ऊपर की भूमिका के इन गुणों का प्रगटीकरण होता है । हु इसलिए बार-बार इस प्रकार प्रार्थना करना योग्य ही है । इस प्रकार प्रार्थना करते हुए भी इतना खास याद रखना चाहिए कि, शब्द प्रयोग करने मात्र से ये चीजें मिल जाएँ, ऐसा नियम नहीं है, ये शब्द प्रयोग करते हुए भगवान और भगवान के गुणों के प्रति प्रार्थक की रुचि बढ़ती जाएँ, प्रार्थनीय चीजें प्राप्त करने की लालसा जागें और उससे ही अपना आत्मिक विकास मानकर गद्गद हृदय से भक्ति के तीव्र भाव से अगर ये शब्दप्रयोग किए जाएँ, तो ऐसे कर्म का क्षयोपशम होता है कि, जिससे साधक को ये चीजें मिलती हैं । जिनको ऐसे शुभ परिणाम न होते हों, प्रार्थनीय चीजों का विशेष महत्व जो न जानते हों, बल्कि प्रकृति से भद्रक परिणामी होने से ‘यह चैत्यवंदन संसार का नाश कर मोक्ष को प्राप्त करवानेवाला है', वैसा भगवान ने कहा है इसलिए मुझे चैत्यवंदन करना चाहिए, ऐसे सामान्य भाववाले और संयोग मिलें तो अपनी बुद्धि के अनुसार विशेष को जानने की इच्छावाले साधक को यह चैत्यवंदन सामान्य लाभ का कारण होता है । I
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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