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________________ १८२ सूत्र संवेदना - २ मेरे कर्म का अंत नहीं आएगा। इसलिए हे प्रभु ! सबसे पहले आप मुझे भव का वैराग्य प्राप्त करवाए। जिससे वास्तविक अर्थ में मैं धर्म की शुरुआत कर सकूँ ।” जिज्ञासा : संसार के रागी आत्माओं के लिए यह प्रार्थना योग्य है, परन्तु जो संसार से विरक्त हैं और मोक्षमार्ग के लिए सतत प्रयत्न भी करते हैं, वैसी आत्माओं के लिए यह प्रार्थना क्या योग्य है ? तृप्ति : संसार से विरक्त हुई आत्मा के लिए भी यह प्रार्थना योग्य है क्योंकि भवनिर्वेद का परिणाम तरतमता के भेद से अनेक प्रकार का है । इस प्रार्थना द्वारा जिस स्तर का भवनिर्वेद प्राप्त हुआ हो, उससे ऊपर के स्तर का भव-वैराग्य प्राप्त करने के लिए यह प्रार्थना योग्य ही है । और, विषय एवं कषाय भी संसार (भव) ही है, इसलिए विषय-कषाय संपूर्ण नष्ट न हों, तब तक यह प्रार्थना की जाती है ।। ___ संक्षेप में भवनिर्वेद की यह प्रार्थना भवनिर्वेद जिसे प्राप्त नहीं हुआ उसे प्राप्त करने के लिए और जिसे प्राप्त हो गया है, उसे उससे ऊँचे स्तर का भवनिर्वेद प्राप्त करने के लिए योग्य ही है । भवनिर्वेद आने के बाद मोक्षमार्ग के ऊपर चलने की योग्यता प्राप्त होती है, इसलिए अब मार्ग के अनुसरण की दूसरी प्रार्थना करते हुए कहते हैं - मग्गाऽणुसारिया - (मोक्ष) मार्ग का अनुसरण करना । 4. मार्ग चेतसोऽवक्रगमनं, भुजङ्गमगमननलिकायामतुल्य । विशिष्टगुणस्थानावाप्तिप्रगुणः स्वरसवाही क्षयोपशमविशेषः । 'मार्ग' की ऐसी व्याख्या 'नमोऽत्थुणं' सूत्र में की गई है । सामान्यतः साँप टेढा चलने के स्वभाववाला है, परन्तु नली (पाईप) में प्रवेश करते समय सीधा चलता है, उसी तरह अनादिकाल से जीव विषय-कषायरूप टेढे मार्ग पर चलने के स्वभाववाला है; परन्तु ऐसा जीव भी जब कमें की लघुता प्राप्त करता है, तब वह मोक्षमार्ग प्राप्त करवानेवाली शास्त्रानुसारी सीधी चाल चलता है । उसकी इस सीधी चाल को ही 'मार्ग' कहते हैं। अपने गुणों को प्रकट करवानेवाला उसका यह सीधा गमन मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से होता है, इसलिए उसे 'क्षयोपशम विशेष' कहा जाता है । यहाँ साधक भगवान के पास स्वयं ऐसे मार्ग का अनुसरण करे, ऐसी प्रार्थना करता है ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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