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________________ १७८ सूत्र संवेदना - २ होउ ममं तुह पभावओ भयवं ! - “हे भगवान ! मुझे आपके प्रभाव से (भवनिर्वेद आदि की) प्राप्ति हो !" भयवं' शब्द भगवान् का वाचक है । 'भगवान्' शब्द में भग शब्द के चौदह अर्थ होते हैं । उसमें सूर्य और योनि छोड़कर बारह प्रकार के अर्थ जिनमें घटित होते हों, उन्हें भगवान कहते हैं । 'भयवं' संबोधनवाचक शब्द है । हृदय मंदिर में बिराजमान भगवान को संबोधन कर प्रार्थना करते हुए साधक कहता है - - "हे भगवान ! आपके प्रभाव से मुझे भवनिर्वेद आदि गुणों की प्राप्ति हो! भवनिर्वेद आदि जिन आठ वस्तुओं की प्रार्थना करनी है, वे मुख्यतया आंतरिक भाव हैं । अनादिकाल से टेढी चाल चलनेवाली आत्मा की पौद्गलिक सुखों की तरफ की चाल को बदलकर, उसे वहाँ से उन्मुख कर आत्माभिमुख करना, यह आसान कार्य नहीं है । यह कार्य अपने सामर्थ्य से संभव भी नहीं है । इसलिए साधक ऐसा कार्य करने के लिए अनंत शक्ति के स्वामी परमात्मा को 'भयवं' कहकर संबोधन करता है । प्रभु के साथ इस तरह भक्ति के तंतु से जुड़कर मन के उपयोग द्वारा सात राजलोक दूर रहे प्रभु को अपने हृदय सिंहासन पर स्थापित करता है और इस तरह निकट आए हुए प्रभु से बिनती करता है कि, 'हे भगवान ! आप गुणों के भंडार हैं, करुणा के सागर हैं, अचिंत्य शक्ति से युक्त हैं, इसलिए हे प्रभु ! आपके प्रभाव से मुझे भवनिर्वेद आदि की प्राप्ति अवश्य होगी, ऐसा मुझे विश्वास है ।' प्रभाव का अर्थ है प्रसाद-कृपा । उपास्य तत्त्व के प्रति अत्यंत बहुमान का भाव, अंतरंग भक्ति का भाव, वहीं वास्तव में प्रसाद है. वहीं उनकी 3. भयवं - भगोऽर्क-ज्ञान माहात्म्य-यशो वैराग्य-मुक्तिषु । रूप-वीर्य-प्रयत्नेच्छाश्री-धर्मेश्वर-योनिषु ।। 'भग' शब्द सूर्य; ज्ञान, माहात्म्य, यश, वैराग्य, मुक्ति, रूप, वीर्य, प्रयत्न, इच्छा, लक्ष्मी, धर्म, ईश्वर और योनि अर्थ में प्रयुक्त होता है।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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