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________________ १६६ सूत्र संवेदना - २ वहाँ सुख की कल्पना मात्र भी सम्भव नहीं है, इसलिए यहाँ नरक गति नहीं ली होगी, ऐसा लगता है । यह गाथा बोलते हुए साधक को होता है कि, "मन की एकाग्रतापूर्वक मंत्र जाप न हो सके, तो भी कोई चिंता नहीं । भावपूर्वक इस परमात्मा को प्रणाम करूँगा, तो भी मुझे दुःख या दुर्गति तो नहीं मिलेगी । इसलिए भावपूर्वक प्रणाम करने का सतत प्रयत्न करूँ ।” प्रणाम का फल बताने के बाद अब पार्श्वनाथ प्रभु से प्राप्त हुआ सम्यक्त्व कैसा है ? वह बताते हैं - तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि-कप्पपायवब्भहिए - चिंतामणि रत्न और कल्पवृक्ष से भी अधिक प्रभाव वाला तुम्हारा सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन प्राप्त होने से ___ सम्यक्त्व आत्मा का गुण है, परन्तु मिथ्यात्व मोहनीयकर्म के आवरणों से आत्मा का यह गुण आच्छादित रहता है । वास्तविक तरीके से भगवान के दर्शन करने से अर्थात् ‘परमात्मा गुणवान, सर्वोत्तम हैं', ऐसे भावपूर्वक दर्शन करने से अथवा भगवान के वचनों को सुनने या समझने से मिथ्यात्व के आवरण विलीन होते हैं और आत्मा का सम्यक्त्व गुण प्रगट होता है । यह गुण प्रगट होने पर आत्मा परम विवेकी बनती है । जीव-अजीव, पुण्यपाप आदि तत्त्वों की उसमें श्रद्धा प्रगट होती है, इसीसे वह हेय को हेय रूप में और उपादेय को उपादेय के रूप में स्वीकार सकती है । यह गुण भगवान के निमित्त से प्रगट होता है, इसीलिए यहाँ 'तेरा सम्यग्दर्शन' अर्थात् 'भगवान का सम्यग्दर्शन' ऐसा कहा है । विशुद्ध श्रद्धा स्वरूप सम्यग्दर्शन को जगत् में सर्वश्रेष्ठ माने जानेवाले चिंतामणि रत्न या कल्पवृक्ष से भी अधिक प्रभाव वाला कहा है । उसका कारण यह है कि, चिंतामणि रत्न या कल्पवृक्ष पुण्यवान आत्मा को भौतिक 6. सम्यक्त्व की विशेष व्याख्या के लिए देखें 'नमुत्थुणं सूत्र' का 'बोहिदयाणं' पद ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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