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उवसग्गहरं सूत्र
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'विसहर-फुलिंग' नाम के इस मंत्र को जो मनुष्य केठ में सदा धारण करता है अर्थात् इस मंत्र को जो कंठस्थ करके दिन-संत उसका जाप करता है, उसका स्मरण करता है, उसकी ग्रहकृत पीड़ाएँ, प्लेग जैसे रोग, दुष्ट बुखार आदि शांत हो जाते हैं ।
यहाँ ‘मनुज' शब्द लेने का एक कारण यह है कि - मंत्र साधना मनुष्य ही कर सकते हैं और दूसरा कारण यह है कि - मंत्र साधना भी सभी मनुष्य नहीं कर सकते, परन्तु 'मनु' अर्थात् मंत्र और 'ज' अर्थात् मंत्र साधना की विधि को जाननेवाले मंत्रज्ञ । मंत्र की विधि को जाननेवाले अगर मंत्र की साधना करें, तो तत्काल फल मिलता है और विधि से अज्ञात आत्मा मंत्र-जाप करे, तो विशेष फल की प्राप्ति नहीं होती, इसलिए मूल में 'मनुज' शब्द ग्रहण किया है ।
मंत्र को बताकर अब मंत्र का फल बताते हैं -
जो साधक इस मंत्र का सदा जाप करते हैं, उन्हें शनि, मंगल आदि ग्रहकृत कोई तकलीफ हो अथवा वात, पित्त और कफ़ के वैषम्य से कोई रोगादिकृत पीड़ा हो अथवा प्लेग, मारी जैसे रोग हुए हों या दुट्ठजरा=दुष्ट बुखार=ऐकांतरिय वगैरह बुखार आता हो, तो वह शांत हो जाता हैं ।
अगर 'दुट्ठजरा' शब्द में दुट्ठ और जरा दो शब्द को अलग करें, तो दुट्ठ का अर्थ दुष्ट लोगों द्वारा दी गई पीड़ा और जरा का अर्थ किसी भी प्रकार का बुखार, ऐसा भी अर्थ हो सकता है ।
यह गाथा बोलते हुए ऐसी संवेदना होती है कि, पार्श्वनाथ भगवान का कैसा अद्भुत माहात्म्य है । उनके नाम से अंकित मंत्र का जाप करने से भी बाह्य उपद्रवों से साधक का रक्षण होता है । आधि, व्याधि, उपद्रव सभी शांत हो जाते हैं। ___ मंत्र बताने का मतबल ऐसा नहीं है, कि रोगादि को दूर करने के लिए सदा इस मंत्र का जाप करना ही चाहिए, परन्तु ऐसा कहने के द्वारा तो मंत्र