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________________ १६० सूत्र संवेदना - २ घनकर्म अर्थात् घातिकर्म । पार्श्वनाथ भगवान ज्ञानावरणीयादि घातिकर्म का नाश करके अनंत ज्ञानादि गुणसंपत्ति के स्वामी बने हैं। अनंत आनंदमय लोकोत्तर स्वरूप को उन्होंने प्राप्त किया है । ऐसे स्वरुप वाले परमात्मा को स्मरण में लाने से, पार्श्वनाथ भगवान के प्रति पूज्यभाव बढ़ता है । “मेरा भी यही स्वरूप है और इस परमात्मा की भक्ति करके मुझे भी अपने इस स्वरूप को प्राप्त करना है ।" वैसी भावना की वृद्धि होती है । यह विशेषण परमात्मा की आंतरिक संपत्ति का सूचक है और वह हमें अपनी आंतरिक संपत्ति प्राप्त करवाने के लिए आदर्शभूत है। ज्ञानावरणीयादि कर्म से रहित ऐसे परमात्मा की उपस्थिति करवाने द्वारा उनका ज्ञानातिशय बताया है । विसहर-विस-निन्नासं - विषधरों के विष का संपूर्ण नाश करनेवाले को, श्रद्धा और बहुमानपूर्वक पार्श्वनाथ भगवान का नामस्मरण, नाम का जाप या उनके अभिषेक का न्हवणजल विषधर-जहरीले सर्प या नाग के जहर का या जहरीले जंतु से चढ़े ज़हर का अवश्य नाश करता है। जिस ज़हर से तत्काल प्राण का वियोग होता है, वैसा ज़हर भी पार्श्वनाथ प्रभु के नामस्मरण मात्र से नाश होता है, इसलिए प्रभु विषधर के विष का निर्मूलनाश करनेवाले कहलाते हैं । साधना करने की इच्छावाले कितने साधकों का इतना सत्त्व नहीं होता कि, बाह्य विघ्नों में उनका मन टिक सके, जब उन्हें पता चलता है कि इन भगवान का स्मरणादि सर्पादि का जहर भी उतार सकता है और जब उन्हें दृढ़ विश्वास होता है कि सामान्य विन तो उनके नाम मात्र से भी जरूर नष्ट हो जाएँगे, तब वे पार्श्वनाथ भगवान की भक्ति में विशेष रूप से जुड़ते हैं । इस विशेषण द्वारा परमात्मा का बाह्य प्रभाव भी कितना विशिष्ट है वह बताया है तथा विधी के नाशक के रुप में परमात्मा का अपायापगम अतिशय बताया है ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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