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सूत्र संवेदना - २
वैसे भविष्य काल भी अनंत है, उसका कोई अंत नहीं है । भूतकाल की तरह अनंत भविष्य में भी अनंत तीर्थंकर होनेवाले हैं । वर्तमान में भी पाँचों महाविदेह में हज़ारों तीर्थंकर आत्माएँ जन्म ले चुकी हैं एवं द्रव्यजिन के तौर पर अनेक अवस्थाओं में वे विद्यमान हैं । उन द्रव्यजिनों को इस पद द्वारा स्मृति में लाना है ।
यह पद बोलते हुए बीता हुआ भूतकाल, आनेवाला अनंत भविष्यत् काल एवं वर्तमानकाल, तीनों को उपस्थित करके उस काल में हुए, होते, एवं होनेवाले; चाहे कद में, उम्र में भिन्न-भिन्न होने पर भी (सत्ता स्वरूप से) गुणसंपत्ति से समान ऐसे अनंत अरिहंतों को याद करके, उनके गुणों से मन को उपरंजित करके, वाणी से ये शब्द बोलते हुए एवं काया से दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर नमस्कार करना है । इस तरह उपकारी को नमस्कार करके ही जीव मोक्ष में जाने की योग्यता संपादित कर सकते हैं ।