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नमोत्थुणं सूत्र
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भावपूर्वक का यह जाप भय प्राप्त करवानेवाले पापकर्मों का नाश करवाकर निर्भयता के कारणभूत पुण्यकर्म के उदय में सहायक बनता है।
प्रथम पद 'नमोऽत्थु णं' में नमो शब्द दिया है एवं यहाँ भी नमो शब्द दिया है । इसका प्रयोजन यह है कि, आदि से अंत तक सर्व पदों में 'नमो' शब्द को जोड़ना है।
तैंतीस विशेषणों द्वारा भाव अरिहंतों को नमस्कार किया, उन अरिहंत भगवंतों के प्रति विशेष भक्ति से प्रेरित होकर उनकी विशेष उपस्थिति के लिए अब तीन काल के सर्व द्रव्य तीर्थंकरों को नमस्कार करते हुए कहते हैं
58जे अ अइया सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले । संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ।। - जो (अरिहंत) भूतकाल में सिद्ध हुए हैं, जो भविष्यत् काल में सिद्ध होंगे एवं वर्तमान काल में जो (द्रव्य अरिहंत के रूप में) विद्यमान हैं, उन सब अरिहंतों को मैं त्रिविध योग से वंदन करता हूँ।
तीनों काल के द्रव्य जिनों के वंदन की यह गाथा पहले अलग थी, मतलब कि पहले इस सूत्र के साथ जुडी हुई नहीं थी । धर्मसंग्रह ग्रंथ की वृत्ति में इस गाथा का अर्थ करते हुए कहा है कि, अतीतकाल में जो सिद्ध हुए हैं, (वर्तमान में अन्य गति में रहे हुए) जो भविष्य में सिद्ध होंगे एवं जो वर्तमान में जन्म लेकर अभी छद्मस्थ अवस्था में विहर रहे हैं, उन तीनों कालों के द्रव्यजिनों को मैं त्रिविध योग से वंदन करता हूँ ।
आज तक भूतकाल में अनंत उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी हो चुकी हैं । उन सब उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी में भरत-ऐरवत में अनंतबार २४-२४ तीर्थंकर एवं महाविदेह में अनंत तीर्थंकर हुए हैं । भूतकाल जैसे अनंत है, 58.ये पद ‘ललितविस्तरादि' ग्रंथों में नहीं लिए है । इसलिए इन पदों का प्रक्षेप पीछे के सुविहित
आचार्यों ने किया होगा एवं भाव वृद्धि के लिए बोला जाता होगा, वैसा अनुमान होता है ।