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________________ १४२ सूत्र संवेदना - २ इन पदों को बोलते हुए दुःखभरे संसार से अत्यंत विरोधी महासुख के स्थानभूत मोक्ष एवं वहाँ रहे हुए महासुख में रमण करते हुए परमात्मा को नज़र के समक्ष लाकर उनको प्रणाम करके प्रार्थना करें कि “हे नाथ ! आपको किया हुआ मेरा यह नमस्कार हमें शीघ्र ऐसे गुणों के स्थानभूत सिद्धिगति को प्राप्त करवाएँ ।” नमो जिणाणं जिअभयाणं - भयों को जिन्होंने जीता है, वैसे जिनों को मेरा नमस्कार हो । 1 जन्म-मरण एवं संयोग-वियोग से रचित इस संसार में ऐसा कोई स्थान नहीं है कि जहाँ भय न हो ! देवलोक में जन्म हुआ एवं उच्चत्तम भौतिक सुख की प्राप्ति हुई तो भी वहाँ मृत्यु का भय तो है ही । अच्छे से अच्छे व्यक्तियों का संयोग हुआ, खूब आनंद हुआ परन्तु वहाँ भी वियोग का दुःख तो निश्चित है । संसार के चारों ओर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट दीखता है कि, संपूर्ण संसार भय से भरा हुआ है । कोई स्थान ऐसा नहीं है, कि जहाँ सात भयों में से एक भी भय न हो। भगवान ने इस संपूर्ण संसार को अलविदा कहकर परम आनंददायक मोक्ष को प्राप्त किया है, इसी कारण अब उन्हें मरण का, वियोग का या अन्य किसी भी प्रकार का भय नहीं है; क्योंकि भय का मूल कारण कर्म संयोगवाला संसार है; भगवान उससे ही मुक्त हो गए हैं, इसलिए वे भयमुक्त हैं। इसके अलावा, राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करने के कारण वे जिन भी हैं। रागादि के विजेता एवं भयमुक्त भगवान को मेरा नमस्कार हो । यह पद बोलते हुए एक ओर भय से भरे संसार एवं भय के कारण विह्वल हुए अनंत जीवों को और दूसरी ओर भय से सर्वथा मुक्त हुए परमात्मा को नज़र के समक्ष लाकर नमस्कार करना चाहिए । सर्वथा निर्भय परमात्मा मेरे सामने हैं एवं भयावह ऐसे इस संसार से मुक्त हुए इन निर्भय परमात्मा का ही मुझे शरण है, ऐसे भावपूर्वक किया हुआ नमस्कार साधक आत्मा को तत्काल भय से मुक्त करवाकर निर्भय, स्वस्थ एवं शांत बनाता हैं, इसीलिए कोई भी आपत्ति आने पर इस पद का जाप किया जाता है ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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