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________________ नमोत्थुणं सूत्र तैरानेवाले, बोध पाए हुए एवं बोध देनेवाले, मुक्त बैन हुए एवं मुक्त करवानेवाले परमात्मा को याद करके नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि - “हे नाथ ! आप मुझे भी रागादि दोषों से मुक्त करवाकर आपके समान बनाइऐ ।” इन चार पदों द्वारा 'आत्म-तुल्य - परफल - कर्तृत्व' अपने समान दूसरों को बनानेवाली आठवीं संपदा कही गई । जो फल खुद को मिला है, वही फल 1 १३९ दूसरे को प्राप्त करवाने स्वरूप परमात्मा का परम उपकार सदा स्मरण में रहे, तो परमात्मा के प्रति अहोभाव, आदरभाव अत्यंत बढ़ जाता है । दीर्घ दृष्टिवाले विचारक पुरुष को परमात्मा का इतना स्वरूप जानने के बाद भी ऐसी जिज्ञासा हो सकती है कि ऐसे भी परमात्मा कौन से अक्षय गुण एवं अक्षय फ़ल को प्राप्त करते हैं । वह बताने के लिए तीन पद की नौवीं 'प्रधानगुण अपरिक्षय- प्रधानफ़लाप्ति - अभय संपदा' (मोक्ष फल प्राप्ति संपदा) कहते हैं अथवा अरिहंत भगवान ने जो मोक्षावस्था पाई है, उसका स्वरूप अब बताते हैं । सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं ( नमोऽत्थु णं ) - सब जाननेवाले एवं सब देखनेवाले परमात्मा को ( मेरा नमस्कार हो ।) सर्व को जाने (साकार उपयोग ) वह सर्वज्ञ एवं सर्व का दर्शन (निराकार उपयोग) करे वह सर्वदर्शी । भगवान जगद्वर्ती सभी पदार्थों को जानते हैं एवं देखते हैं । ‘अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं' इस पद द्वारा परमात्मा यद्यपि अप्रतिहत ज्ञान-दर्शन को धारण करनेवाले हैं अर्थात् भगवान में श्रेष्ठ ज्ञान एवं दर्शन गुण हैं, वह तो कह दिया था । फिर भी सर्व पदार्थ विषयक परमात्मा का ज्ञान एवं दर्शन मोक्ष में जाने के बाद भी सदाकाल के लिए साथ ही रहनेवाला है । मोक्ष में जाने के बाद भी प्राप्त हुए इन प्रधान गुणों का परिक्षय (लेश मात्र भी नाश ) नहीं होता; यह बताने के लिए यहाँ पुनः | - -
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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