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________________ ११४ सूत्र संवेदना - २ यह पद बोलते हुए शरणदाता ऐसे परमात्मा को याद करके, सर्वथा रागादि शत्रु के विजेता परमात्मा के प्रति बहुमान प्रगट करके नमस्कार करते हुए परमात्मा को प्रार्थना करनी चाहिए - "हे नाथ ! अनंतकाल से अशरण दशा में भटकते हमें शरण देकर सच्चे सुख्ख का स्वामी बनाएँ ।” बोहिदयाणं (नमोऽत्थु णं) - बोधि-सम्यग्दर्शन को देनेवाले परमात्मा को (मेरा नमस्कार हो) ।। बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शन । 'जिनेश्वर भगवान ने जो पदार्थ जिस प्रकार कहे हैं, वह वैसे ही हैं ।' वैसी अडिग श्रद्धा सम्यग्दर्शन है । यह परिणाम तत्त्व के विशिष्ट चिंतन से हुए मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होता है । इसलिए 'शरण' से बोधि की प्राप्ति रूप फल मिलता है । __ मन और आत्मा के ऊपर जब गाढ़ मिथ्यात्व का प्रभाव होता है, तब उसमें राग-द्वेष के भाव अति प्रबलता से प्रवर्तित होते हैं । इस तीव्र राग- द्वेष के परिणाम को ग्रंथि45 कहते हैं । ग्रंथि अर्थात् एक प्रकार का पूर्वग्रह - एक तरह का complex / prejudice जिसके कारण जीव खुद की मान्यता नहीं 45.गंठि त्ति सुदुब्भेओ, कक्खडघणरूढगुढगंठि व्व । जीवस्स कम्मजणिओ घणरागदोषपरिणामो ।। ग्रंथि अर्थात् गाँठ या बंधन । आत्मा के ऊपर पड़े हुए राग-द्वेष के घन संस्कारों को ग्रंथि कहते हैं । यह गाँठ कैसी है, उसको समझाने के लिए शास्त्र में ग्रंथि के चार विशेषण बताएँ हैं : १. कर्कश : जैसे काथी को दोरी वगैरह में पड़ी हुई गांठ को खोलने में हाथ छिल जाते हैं, वैसे विचित्र एवं विलक्षण परिणामस्वरूप इन रागादि को निकालने में दम निकल जाता है । २. घन : रेशमी गाँठ पर तेल और मैल चढ़ने से जैसे गाँठ मजबूत हो जाती है, वैसे ही कर्मों के अनुबंधों के कारण ये रागादि घन हो जाते हैं। ३. रूढ : बारीक । रेशमी डोरे में बहुत समय से पड़ी हुई गाँठ जैसे रूढ़ हो जाती है, वैसे ही अनादिकाल से ते रागादि के परिणाम अत्यंत रूढ़ हो जाते हैं । ४. गूढ : पतली रेशम की डोरी में बहुत समय से पड़ी हुई गांठ जिस प्रकार दिखती ही नहीं, वैसे ही जीव को मिथ्यात्व के कारण हुए बुद्धि के विभ्रम से रागादि भावों दोषरूप लगते ही नहीं हैं एवं ये दोषरूप भाव कहाँ से उठते हैं, किस निमित्त से प्रकट होते हैं तथा आत्मा का किस प्रकार अहित करते है, वह समझते ही नहीं ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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