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________________ सूत्र संवेदना - २ जिसकी आँखों की पट्टी खुल गई हो और जो गड्ढे में से बाहर आ चुका है, ऐसा चक्षुवाला व्यक्ति या मुसाफिर जिस तरह मार्ग को देख सकता है; परन्तु चक्षु के बिना या आँख पर पट्टी होने पर मार्ग नहीं देख सकता, उसी तरह योगमार्ग को देखने के अनुकूल तत्त्व की जिज्ञासारूप अंतःचक्षु की प्राप्ति होने से ही साधक क्रमशः मार्ग को प्राप्त कर सकता है। १०८ इस भूमिका की प्राप्ति के पूर्व भी जीव धर्मक्रिया तो करता था, परन्तु कषायों के उपशम से प्राप्त होनेवाले आत्मिक सुख के लिए नहीं । चक्षु की प्राप्ति के बाद किया हुआ धर्म पहले की अपेक्षा से अलग ही होता है । तत्त्व के बोध में कारणभूत यह चक्षु भी अभय की तरह परमात्मा द्वारा ही प्राप्त होते हैं; क्योंकि भगवान सर्वज्ञ वीतरागं हैं एवं केवलज्ञान रूप विशिष्ट चक्षु से वे सब पदार्थों को देखते हैं । ऐसे विशिष्ट चक्षु के कारण ही परमात्मा तत्त्वदर्शन के कारणभूत चक्षु को प्रदान कर सकते हैं। जिनके पास ऐसे चक्षु नहीं होते, वे दूसरों को भी ऐसे चक्षु नहीं दे सकते । यद्यपि, धर्मरुचिरूप यह चक्षु काल, स्वभाव, भवितव्यता आदि की अपेक्षा जरूर रखते हैं, तो भी भगवान की कृपा के बिना यह प्राप्त नहीं होते । इस जगत में तत्त्वमार्ग का प्रकाश फ़ैलाने का काम मात्र परमात्मा ने ही किया है एवं उनकी कृपा का पात्र बने हुए जीव ही संसार को उस प्रकार से देख सकते हैं, अन्य नहीं । इसलिए प. पू. उपाध्याय यशोविजयजी म. सा. अपने स्तवन में कहते हैं - काल, स्वभाव, भवितव्यता ते सघला तुझ दासों रे । मुख्य हेतु तुं मोक्षनो, ए मुज सबल विश्वासों रे ।। श्रद्धारूप चक्षु के बिना अंधा अनंतकाल संसार में भटकता है । जब वह परमात्मा की कृपा का पात्र बनता है, तब ही उसे ऐसे चक्षु की प्राप्ति होती है फिर उसे संसार में ज्यादा नहीं भटकना पड़ता । यह पद बोलते हुए कैवल्य चक्षु को पाए हुए परमात्मा को नज़र के समक्ष रखकर सोचना चाहिए -
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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