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________________ सूत्र संवेदना - २ ३. दोनों से अलिप्त : विकसित कमल जैसे कीचड़ और पानी दोनों से अलिप्त रहता है, वैसे भगवान भी कर्म से प्राप्त हुए जन्म एवं भोग दोनों से अलिप्त रहते हैं । ४. सहज सौंदर्य : जैसे कमल में प्राकृतिक सुंदरता होती है, वैसे ही भगवान में ३४ अतिशयों एवं आत्मिक गुणों के योग से बाह्य - अभ्यंतर दोनों प्रकार की स्वाभाविक सुंदरता होती है। ५. लक्ष्मी का स्थान : जैसे कमल पर लक्ष्मी देवी का वास है, वैसे ही भगवान में भी केवलज्ञानादि लक्ष्मी एवं सर्वोच्च संपत्ति का वास होता है । ६. चक्षु आदि को प्रीतिकर : जैसे श्रेष्ठ कमल आँख-नाक आदि इन्द्रियों को आनंदप्रद बनता है, वैसे ही परमात्मा अद्भुत रूप आदि के कारण चक्षु आदि के लिए आनंददायक बनते हैं तथा जगत् के जीवों को तत्त्व का दर्शन करवाकर सम्यग्दर्शन गुण को प्रकट करवाकर आत्मा का आनंद प्राप्त करवाते हैं । ७. उत्तम देव, मनुष्य एवं तिर्यंच से सेव्य : जिस प्रकार कमल में सुगंध, सौंदर्य वगैरह विशिष्ट गुण होने से भ्रमर रूपी तिर्यंच, मनुष्य एवं देव भी उसको प्रयोग में लेते हैं, वैसे अरिहंत परमात्मा में केवलज्ञामदि विशिष्ट गुण होने से भव्य तिर्यंच, मनुष्य एवं देव परमात्मा की उपासना करते हैं । ८. सुख का कारण : जैसे श्रेष्ठ कमल देव-मनुष्य के सुख का कारण है, वैसे भगवान भी भव्य जीवों के अनंत आनंद स्वरूप मोक्ष सुख का कारण बनते हैं । इस प्रकार कमल के समान आठ गुणों से युक्त परमात्मा को मेरा नमस्कार हो। .
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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