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________________ ९. अखिन : १०. निष्कंप : नत्थु सूत्र सिंह को जैसे अपने मार्ग में कभी थकान नहीं होती, वैसे ही संयम की कठोर साधना करते हुए परमात्मा को कभी भी थकान नहीं होती, परन्तु परम आनंद होता है । ८९ जैसे सिंह अपने इष्ट कार्य में स्थिर - अचल होता है, वैसे त्रिलोकनाथ परमात्मा भी अपने ध्यान में अत्यंत स्थिर होते हैं। घोर उपसर्गों के बीच भी उनके ध्यान की धारा कभी नहीं टूटती, अखंड रहती है । वे अपने ध्यान में मेरु पर्वत जैसे निष्कंप रहते हैं । 1 यह पद बोलते समय कर्म एवं कषाय के सामने क्रूर हुए एवं कष्ट के सामने सहिष्णु बने हुए परमात्मा को अंतरपट पर लाकर भाव से नमस्कार करते हुए परमात्मा को प्रार्थना करनी चाहिए, “हे नाथ ! आपको किया हुआ यह नमस्कार, कर्मों एवम् कषाय के सामने झुकी हुई मेरी आत्मा को उनका सामना करने एवं कष्टों को सहन करने के लिए समर्थ बनाएँ ।” पुरिसवर - पुण्डरीयाणं ( नमोऽत्थु णं) - पुरुषों में श्रेष्ठ पुंडरीक के समान परमात्माओं को ( मेरा नमस्कार हो 1) पुंडरीक कमल में जो आठ प्रकार की विशेषताए हैं, वैसी विशेषताएं भगवान में भी हैं, इसलिए भगवान को पुंडरीक कमल के समान कहा है । कमल के साथ परमात्मा की तुलना : १. कीचड में जन्म : जैसे सुन्दर कमल का जन्म कीचड़ में होता है, वैसे ही प्रभु का जन्म भी कर्मरूपी कीचड़ से भरे संसार में होता है । २. पानी में वृद्धि : जैसे कमल पानी से बढता है, वैसे ही प्रभु दिव्यभोगरूपी पानी द्वारा वृद्धि पाते हैं ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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