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सूत्र संवेदना
इन २३ विषयों के २५२ प्रकार के विकार होते हैं । इन्द्रियों के द्वारा इन २३ विषयों को जानना ज्ञान है । जानकर इनमें राग-द्वेष करना, यह अच्छा है और यह बुरा है ऐसा मानना, उनमें से किसी को पसंद करना, किसी को नापंसद करना, इत्यादि इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान का विकार है । ऐसे विकार से जीव कर्मबंध एवं कुसंस्कारों को प्राप्त कर दुर्गति का भाजन बनता है । इसलिए मुनि पाँचों इन्द्रियों के विकार को रोकते हैं । इस तरह पाँच इन्द्रियों सबंधी विकार को रोकना ही पाँच इन्द्रियों का संवर है एवं मनोज्ञ विषयों में राग तथा अमनोज्ञ विषयों में द्वेष का परिणाम आस्रवभाव है । अतः संवर भाव वाले गुरु भगवंत पाँच इन्द्रियों के विषयों में प्रायः प्रवृत्ति ही नहीं करते और यदि अनिवार्य तौर से उनमें प्रवर्तन करने का जब प्रसंग भी आए, तब शास्त्रोक्त तत्त्वचिंतन द्वारा मन को शुद्ध आत्मभाव से भावित करके, उन उन विषयों के अच्छे-बुरे असर से मन को मुक्त रखने का प्रयास करते हैं ।
संवर के प्रकार :
संवर भाव दो प्रकार का होता हैं - (१) द्रव्य संवर (२) भाव संवर
2. पाँच इन्द्रिय के २३ विषयों के २५२ विकार :
स्पर्शनेन्द्रिय ९६, रसनेन्द्रिय ६०, घ्राणेन्द्रिय २४,
चक्षुरिन्द्रिय ६०, श्रोतेन्द्रिय १२
(९६+६०+२४+६०+१२)
=
२५२
4
स्पर्शनेन्द्रिय के विषय ८x१२ [३ (सचित्त, अचित्त और मिश्र ) x २ (इष्ट, अनिष्ट) x २ (राग, द्वेष)=१२] = ९६
रसनेन्द्रिय के विषय ५x१२ [ ३ ( सचित्त, अचित्त और मिश्र ) x २ (इष्ट, अनिष्ट) x २ ( राग, द्वेष)=१२] = ६०•
घ्राणेन्द्रिय के विषय २x१२ [३(सचित्त, अचित्त और मिश्र) x २ (इष्ट, अनिष्ट) x २ ( राग, द्वेष)=१२] = २४
चक्षुरिन्द्रिय के विषय ५x१२ [ ३ ( सचित्त, अचित्त और मिश्र ) x २ (इष्ट, अनिष्ट) x २ ( राग, द्वेष)=१२] = ६०
श्रोतेन्द्रिय' के विषय ३x४ [२ ( इष्ट, अनिष्ट ) x २ ( राग, द्वेष) = ४] = १२