SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री पंचिदिय सूत्र अन्वय सहित संस्कृत छाया : पंचिंदिय-संवरणो, तह नवविह-बंभचेर-गुत्ति-धरो । पंञ्चेन्द्रिय-संवरणः, तथा नवविध-ब्रह्मचर्य-गुप्ति-धरः पाँच इन्द्रियों के विकार को रोकनेवाले तथा नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्ति को धारण करनेवाले चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारस-गुणेहिं संमुत्तो ।।१।। चतुर्विध-कषाय-मुक्तः, इति अष्टादशगुणैः संयुक्तः ।।१।। चार प्रकार के कषाय से मुक्त, इन अठारह गुणों से संयुक्त १. पंच-महव्वय-जुत्तो, पंचविहायार पालण-समत्थो । पञ्च-महाव्रत-युक्तः, पञ्चविधाचार-पालन-समर्थः, पाँच महाव्रतों से युक्त, पाँच प्रकार के आचारों का पालन करने में समर्थ पंच-समिओ ति-गुत्तो, छत्तीस-गुणो गुरु मझ्न ।।२।। पञ्च-समितः त्रिगुप्तः, षट्त्रिंशद्गुणो गुरुर्मम ।।२।। पाँच समितिवाले, तीन गुप्तिवाले, छत्तीस गुणों से युक्त मेरे गुरु हैं । विशेषार्थ : पंचिंदिय - संवरणो - पाँच इन्द्रियों के विकार को रोकनेवाले । इन्द्रियाँ पाँच होती हैं । उन पाँच इन्द्रियों के कुल २३ विषय होते हैं, एवं 1. पाँच इन्द्रिय के २३ विषय : स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श है और उसके भारी-हलका, ठंडा-गरम, कोमल-कर्कश, स्निग्ध और रूक्ष; इस तरह ८ आठ प्रकार हैं । रसनेन्द्रिय का विषय रस है और उसके खारा, खट्टा, तीखा, कडवा और मीठा, ऐसे ५ (पाँच) प्रकार हैं। घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध है और उसके सुगंध और दुर्गंध २ (दो) प्रकार हैं । चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप है और उसके लाल, हरा, पीला, काला और सफेद ऐसे ५ (पाँच) प्रकार हैं। श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द है और उसके सचित्त, अचित्त और मिश्र ३ (तीन) प्रकार हैं । इस प्रकार पाँच इन्द्रियों के २३ विषय है । स्पर्शनेन्द्रिय - ८, रसनेन्द्रिय - ५, घ्राणेन्द्रिय - २, चक्षुरिन्द्रिय - ५, श्रोत्रेन्द्रिय - ३ = (८+५+२+५+३) = २३
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy