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श्री पंचिदिय सूत्र
सूत्र परिचय:
इस सूत्र का उपयोग गुरु की स्थापना करने के लिए होता है । इसलिए, इस सूत्र का दूसरा नाम "गुरुस्थापना सूत्र" है ।
गुणों की प्राप्ति करवानेवाला कोई भी धर्मानुष्ठान, गुणवान गुरु के समक्ष करने से प्रमाद को स्थान नहीं मिलता, भूलों से अपना बचाव होता है और आनंद, उल्लास एवं वीर्य की भी वृद्धि होती है । इसलिए, संभव हो तो सभी धर्मक्रियाएँ गुरुभगवंत की उपस्थिति में ही करनी चाहिए । जब सद्गुरु भगवंत की उपस्थिति न हो, तब इस सूत्र द्वारा गुरु के छत्तीस गुणों को उपस्थित करके, मुख्यतया पुस्तक में अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्र के किसी भी उपकरण में गुणवान गुरुभगवंत की स्थापना करनी चाहिए । इस तरह स्थापना करके, ऐसा भाव उत्पन्न करना चाहिए कि, गुरु भगवंत साक्षात् मेरे सामने ही है अतः मुझे अब प्रत्येक अनुष्ठान उनकी आज्ञा लेकर ही करने है ।' इस तरह विनयपूर्वक आज्ञा प्राप्त करके अनुष्ठान करने से वह सफल होता है।
इस सूत्र में गुरु के छत्तीस गुणों का वर्णन है । वैसे तो ये छत्तीस गुण आचार्य, उपाध्याय, एवं साधु इन तीनों में होते हैं । फिर भी पुण्यप्रतिभा, ज्ञान की प्रकर्षता, लब्धि संपन्नता, प्रभावकता, परोपकारिता, कुशलता आदि अनेक गुणों के कारण गुरु ने जिनको आचार्य पद पर स्थापित किया