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सूत्र संवेदना इसी तरह अंतिम पद में 'मंगलं' शब्द के प्रयोग के बिना भी अध्याहार से 'मंगलं' शब्द का अर्थ जान सकते थे, फिर भी अंतिम मंगल अर्थवाचक शब्द की तरह ‘मंगलं' शब्द का साक्षात् प्रयोग किया गया है । वैसे तो 'मंगलं' पद की तो प्रतीति हो ही जाती, फिर भी जगत् के कल्याणकारी प्रतिपाद्य विषय के प्रतिपादन में आदि, मध्य और अंत में मंगल करना, आप्तपुरुषों को संमत है और ऐसा करने से पढने, पढाने और चिंतन करनेवाले का सदैव मंगल होता है । इसलिए अंतिम मंगल दर्शाने के लिए इस पद का उपयोग किया गया है ।
आदि, मध्य और अंत में तीन मंगल करने के कारण इस प्रकार हैं - १. प्रारंभ किये हुए ग्रन्थ के अध्ययन आदि कार्य में शिष्य पारंगत हो सके, इसके लिए आदि में मंगलाचरण करना चाहिए ।
२. प्रारंभ किये हुए कार्य में विघ्न न आए, उसके लिए मध्य में मंगल करना चाहिए ।
३. ग्रन्थ के अध्ययन द्वारा विद्या की प्राप्ति = सिद्धि हो, इसलिए अंत में मंगल करना चाहिए ।
इस प्रकार मंगल पद द्वारा अंतिम मंगल करके सूत्रकारश्री ने इस सूत्र की समाप्ति की है । जो भावपूर्वक उसके अर्थ को पढ़कर, इस सूत्र का स्मरण करेंगे, वे तत्काल आत्म कल्याण को प्राप्त कर पाएँगे ।