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________________ सूत्र संवेदना इन पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार करने से कर्मों का क्षय, मंगल का आगमन, इहलोक में आरोग्य, प्रसन्नता इत्यादि की प्राप्ति तथा परलोक में उत्तम कुल, उत्तम जातिवाली सद्गति और क्रमशः मोक्ष की प्राप्तिरूप फल प्राप्त होता है । मंगल शब्ब के भिन्न भिन्न अर्थ : मंगल शब्द के अलग-अलग प्रकार से अर्थ हो सकते हैं । १. 'मंगं लाति इति मंगलम्' अर्थात् मंगं = शुभ को, कल्याण को लाति = लाता है, वह मंगल है । ___ अहवा मंगो धम्मो, तं लाइ तयं समादत्ते - अथवा मंग को अर्थात् धर्म को लाता है, वह मंगल कहलाता है । __२. 'मां पापात् गालयति इति मंगलम्' - अर्थात् जो मुझे पाप से मुक्त करता हैं, वह मंगल है । अर्थात् मेरे पापों का जो नाश करता है, वह मंगल है अथवा जिससे संसार का नाश होता है और धर्म की उन्नत्ति हो, वह मंगल है। ३. 'मङ्गति हितार्थ सर्पतीति मङ्गलम्' - जो सर्व प्राणियों के हित के लिए प्रवर्तन करे, वह मंगल है । ४. 'मङ्गति दुरदृष्टमनेनास्माद् वेति मङ्गलम्' - जिसके द्वारा दुर्भाग्य दूर जाए, उसे मंगल कहते हैं । जिज्ञासा : ‘मंगलाणं च, सव्वेसिं' यह पद रखे बिना सिर्फ ‘पढमं हवइ मंगलं' पद रखा होता तो भी चलता या तो फिर इस पद की क्या आवश्यकता है ? तृप्ति : 'मंगलाणं च सव्वैसिं' इस पद का कथन किए बिना भी अगर 'पढमं हवइ मंगलं' पद का कथन किया जाए तो अर्थापत्ति से 'सर्व मंगल में प्रथम मंगल है ।' ऐसे अर्थ की प्रतीति हो जाती है । फिर भी आठवाँ पद रखा इसका 40. अर्थ से प्राप्त वस्तु को अर्थापत्ति कहा जाता है । जैसे 'देवदत्त पुष्ट है, वह दिन को खाता नहीं है।' ऐसे वाक्य के अर्थ से यह प्राप्त है की, वह रात्रिभोजन करता हैं ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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