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श्री नमस्कार महामंत्र . ५५ आत्माएँ श्रीपालराजा, श्रीमती, सुदर्शन शेठ और अमरकुमार आदि की तरह विघ्नों को दूर करके अनुपम सुख की प्राप्ति करते हैं । द्रव्य-मंगल रूप बाह्य शुभ प्रवृत्तियाँ विघ्नों का नाश करके उत्तमोत्तम सुख दें ही, ऐसा जरुरी नहीं है । जैसे कि अच्छे मुहूर्त में लग्न करने पर कन्या अखंड सौभाग्यवती रहे, ऐसा जरूरी नहीं है । शुभ शकुन देखकर परीक्षा देनेवाला विद्यार्थी (उतीर्ण) पास ही हो, ऐसा भी निश्चित नहीं है, वाजिंत्रादि शुभ निमित्त को प्राप्त करके प्रयाण करनेवाला मुसाफिर अपने इष्ट स्थान पर पहुँचे ही, ऐसा भी निश्चित नहीं है । कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि 'द्रव्य मंगल से कभी अच्छा नहीं होता' परन्तु हमेशा अच्छा ही हो, ऐसा भी निश्चित नहीं है।
इसके विपरीत जिसने भाव मंगल स्वरूप नवकार मंत्र का आश्रय किया हो, वैसे महापुरुष निकाचित कर्म के कारण बाह्य दृष्टि से इष्ट फल को प्राप्त न भी कर सकें, परन्तु आंतरदृष्टि से वे समाधि सुखवाले ही होते हैं। जैसे गहन जंगल में अनेक मुसीबतों के बीच में नवकार के ध्यान में मग्न महासती दमयंती गुफा में भी अपना समय आनंद से व्यतीत करती थी । सगर्भा अवस्था में जंगल में अकेले महासती सीता और अंजना भी पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए सुखपूर्वक समय बिताती थी । आज भी नवकार की आस्थावाले अनेक भव्यआत्माएँ नवकार के स्मरण मात्र से विनों को नाश करके इच्छित फल को प्राप्त करते हैं, ऐसे अनेक उदाहरण देखने और सुनने को मिलते हैं ।
इसका अर्थ यह नहीं है कि, शुभ शकुन, शुभ निमित्त या शुभ मुहूत अनुपयोगी है, परन्तु शुभ शकुन आदि भी भाव मंगल से प्राप्त हुए पुण्य से ही मिलते हैं और फलीभूत होते हैं । यदि पुण्य न हो तो शुभ शकुन आदि कार्य नहीं कर सकते, जबकि भाव नमस्कार तो सफलता के लिए आवश्यक पुण्य को पैदा करके तत्काल या कालक्रम से उत्तमोत्तम सुख देता ही है ।