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सूत्र संवेदना
पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करने स्वरूप मंगल उत्तम मंगल है क्योंकि इन पंचपरमेष्ठी को किया हुआ नमस्कार चित्त में उत्तम कोटि के भावों को उत्पन्न करता है । ये उत्तम भाव पाप के उदय को रोककर पुण्योदय को प्रकट करते हैं । कभी कर्म प्रबल हो तो परिस्थिति न बदले, तो भी भाव से किया हुआ नमस्कार का स्मरण शांति39 देता है । जब कोई व्यक्ति नमस्कार का स्मरण करता है, तब उसका चित्त वीतरागता से भावित होता है एवं उसके कारण कषाय शांत होते हैं । इन कषायों का उपशम भाव ही वास्तव में समता का सुख है । इसीलिए नमस्कार मंत्र का जो स्मरण करता है, उसके पुण्योदय के अभाव में कभी बाह्य परिस्थिति बदले या न बदले, परन्तु कषाय की अल्पता होने के कारण नवकार के प्रभाव से उसकी मनःस्थिति तो अवश्य शुभ (स्वस्थ) ही रहती है । मंगल के प्रकार : __ मंगल दो प्रकार के हैं, लौकिक मंगल (द्रव्य मंगल) और लोकोत्तर मंगल (भाव मंगल) । दही, दुर्वा, श्रीफल, केसर, चंदन, कुमकुम आदि पदार्थ द्रव्य मंगल रूप लौकिक मंगल हैं । जब कि आत्मा की निर्मल परिणति को प्राप्त करवानेवाले पंच परमेष्ठी को किया हुआ नमस्कार या सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यग् चारित्र आदि गुणों को विकसित करनेवाला कोई भी शुभ अनुष्ठान भाव मंगल रूप लोकोत्तर मंगल है । भाव मंगल की उपकारकता :
भाव मंगल एकान्तिक एवं आत्यंतिक (उत्तमोत्तम) सुख देनेवाला है, जब कि द्रव्यमंगल उत्तमोत्तम सुख तो नहीं दे सकता, परन्तु सामान्य सुख भी दे ऐसा नियम नहीं है ।
भाव से नमस्कार महामंत्र का ध्यान करके जो प्रवृत्ति करते हैं, वे
39.गुणाधिकस्य शरणत्वात्, गुणाधिकत्वेनैव ततो रक्षोपपतेः, रक्षा चेह तत् स्वभावतया
एवाभिध्यानतः क्लिष्टकर्मविगमेन शान्तिरिति । - योगशतक, गा. ५०