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सूत्र संवेदना
नहीं होती, तब तक उसे प्राप्त करने के लिए इच्छायोग अथवा शास्त्रयोग से पुनः पुनः नमस्कार करना जरूरी है ।
जिज्ञासा : यहाँ ‘एसो नमुक्कारो' कहने से भी पाँचों पद को नमस्कार का बोध हो जाता, तो फिर 'पंच' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है ?
तृप्ति : ‘एसो' शब्द यह ‘एतद्' सर्वनाम का रूप है, इसका अर्थ 'यह' होता है । यह शब्द का प्रयोग निकट के व्यक्ति या वस्तु के लिए किया जाता है । यदि वस्तु या व्यक्ति दूर हो, तो उसके लिए 'वह' शब्द का प्रयोग होता है । इस पद के नजदीक 'नमो लोए सव्व साहूणं' पद है । इसलिए यदि हम 'पंच' शब्द का उपयोग न करें, तो एसो नमुक्कारो' पद से मात्र साधुओं का नमस्कार ही ग्रहण होता है, जब कि यहाँ तो पाँचों परमेष्ठियों के नमस्कार के फल की बात करनी है, इसलिए यहाँ पंच शब्द का प्रयोग किया गया है ।
जिज्ञासा : 'सव्व पावप्पणासणो' में सर्व पद क्यों रखा ? क्योंकि पावप्पणासणों से सब पापों का नाश होता , वैसा समझ सकते हैं ।
तृप्ति : ‘पावप्पणासणो' शब्द की दो प्रकार से व्युत्पत्ति होती है । 'पापानि प्रणाशयति' - बहुत पापों का नाश करता है । पाप प्रणाशयति - एक पाप का अत्यन्त नाश करता है । इस प्रकार दोनों प्रकार से अर्थ होने से, सामान्य मनुष्य इससे सर्व पापों का नाश होता है, ऐसा नहीं समझ सकता, इसलिए सर्वजन की समझ के लिए 'सव्व' पद का प्रयोग किया गया है।
जिज्ञासा : ‘सव्व पावप्पणासणो' के स्थान पर 'सव्वकम्मप्पणासणो' उपयोग किया होता; तो सर्व कर्म में पाप कर्म का समावेश हो ही जाता ?
तृप्ति : ऐसा लगता है कि 'सव्वकम्म' शब्द का प्रयोग किया होता तो सब कमों का नाश हो, ऐसा अर्थ हो सकता है और सर्व कर्म में पापकर्म भी आ सकते हैं । फिर भी आप्त पुरुषों ने 'पाव' शब्द का उपयोग किया उसका कारण यह है कि नवकार मंत्र सब के हित के लिए है । बाल जीवों